‘‘चुप! खामोश।’’ अनन्या पूरी ताकत से चीखी। इतने में कक्षा का दरवाजा खुला और मेडम कमलेश भीतर प्रवेश करती हुई अपनी नाराजगी जताने लगी- ‘‘अनन्या मोनीटर होकर तुम्हारा इस तरह चीखना शोभा नहीं देता। जब अकेली इतना चिल्लाओगी तो क्लास को किस तरह चुप रखोगी? लगता है तुममें अच्छे मोनीटर के गुण नहीं...तुम ट्रूप कैसे संभालोगी? दरअसल तुमहारी पूरी क्लास भी इस काबिल नहीं कि उसे किसी आयोजन के लिए भेजा जा सके। तुम सबकी यही सजा है कि इस बार तुम्हें इस परेड से वंचित रखा जाय। सूची से चुने गये सब नाम काट दिए जाए।
मेडम....
अनन्या कुछ बोलने को हुई तो मेडम ने उसे झिड़क दिया। बहुत हो गया मैं कुछ नहीं सुनने वाली। एक खाली पिरीयड तुम नहीं संभाल सकती। मैंने अपनी आंखों से सब देख लिया है। मैं तो यही रिपोर्ट करूंगी। चलो लड़कियों अपनी काॅपी निकालो। आज हम 10 वीं प्रश्नावली हल करेंगे। सबसे पहले मैं सरल ब्याज का सवाल लिखाती हूं। सब लिखो। मेडम ने लिखवाना शुरू किया। अनन्या बुझे मन से सवाल लिखने लगी। अनन्या क्या पूरी कक्षा की लड़कियों के चेहरे बुझे हुए थे। जो कक्षा अभी मस्ती में डूबी हुई थी वहां का वातावरण बोझिल हो गया।
पिरीयड के खत्म होते ही दीप्ति ने अनन्या से माफी मांगी- ‘‘साॅरी अनन्या....’’
‘‘अब साॅरी कहने से क्या फायदा? हमारी क्लास का नाम तो कट ही गया ना....।’’ अनन्या की आंसू भरी आंखे यहीं बोल रही थी। दीप्ति अनन्या से लिपट गई।
‘‘हमंे माफ कर दो अनन्या... कहते हुए लड़कियों ने अनन्या को घेर लिया। रूंआसी अनन्या के मुंह से केवल इतना ही फूटा- ‘‘हमें सजा तो मिल ही चुकी है। अब पछताने से क्या फायदा?
आदरजोग श्रीमती विमला भंडारी जी
आपनैं आपरै राजस्थानी बालकथा संग्रह "अणमोल भेंट" पर
केन्द्रीय साहित्य अकादमी रौ वरस २०१३ रौ पुरस्कार घोषित हुयो जाण'र घणो हरख हुयो
♥ घणी घणी बधाई सा... ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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