मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

कारगिल की घाटी : 2



‘‘अरे ये क्या धक्का मुक्की हो रही है?’’ कोई कपड़े खींच रही थी तो कोई बाल नौंच रही थी। अनन्या उन्हें छुड़ाने की कोशिश करने लगी- ‘‘दीप्ति ये क्या तरीका है?’’
‘‘मैंने नहीं मारा धक्का... धक्का पीछे से आया था...वो पीछे बानो की बच्ची...तुझे तो अभी देखती हूं....’’. कहती हुई वह झपटने वाली थी कि दो तीन लड़कियों ने उसे पकड़ कर रोक लिया। लड़ो मत...लड़ो मत....चलो लड़ाई लड़ाई माफ करो, गांधीजी को याद करो।
‘‘उफ् तुम लोग तो किसी ट्रूप में जाने के काबिल हो नहीं। अभी मेडम से सबकी शिकायत करती हूं। कहती हुई मोनीटर ने पेन निकाल लिया और नाम लिखने लगी। लड़ती झगती लड़कियां लड़ना छोड़ अनन्या को घेर लिया।
‘‘ओ अनन्या क्या करती हो...प्लीज मेरा नाम मत लिखना...ट्रूप से मेरा नाम नहीं कटना चाहिये....
‘‘मेरा नाम तूने सबसे पहले लिख दिया।’’ दीप्ति चिल्लाई। ‘‘काटो अभी का अभी। नहीं तो....’’ दीप्ति ने दांत भींच लिये।
‘‘नहीं तो क्या? डराती है? जाओ सब पहले अपनी अपनी जगह बैठो। जो चुपचाप बैठ जायेगा उसका नाम थोड़ी देर में कट जायेगा।’’ अनन्या का कहा मान सब लड़कियां अपनी अपनी जगह बैठ गई। दीप्ति मुंह बना रही थी। उसकी ठोडी में सलमा का दांत गड़ा था। वह अभी भी अपनी दाढ़ी सहला रही थी। बोली- ‘‘शकीला, बानो और गुरमीत का नाम लिखो। सारे फसाद की जड़ यही है।’’
‘‘हमारा क्यों? सबसे पहले अपना नाम लिखवा।’’
‘‘चुप करो। मुझे क्या लिखना है और क्या नहीं ये मैं जानती हूं। कोई भी एक शब्द नहीं बोलेगा।’’ अनन्या के कहने पर दीप्ति ने मुंह बनाते हुए फुसफुसाया, ‘बड़ी आई मोनीटरनी! हूउं!
तभी कक्षा की एक लड़की ने चाॅक उठा कर पीछे बैठी लड़की पर मार दी। लड़की झुककर मार बचा गई। चाॅक दीवार से जा टकराई। पास बैठी लड़की ने चाॅक उठाई और उसी दिशा में जोर से फैंक मारी जहां से चाॅक आयी थी। ‘‘तुम अगाड़ी वाले पीछाड़ी वालो को क्यों मार रहे हो? लो अब तुम खाओ।’’ अब तो चाॅक से मारा मारी का खेल शुरू हो गया। लड़कियां एक दूसरे को चाॅक से मारने लगी। इस बीच अनन्या उठी और कक्षा से बाहर निकल गई। किसी एक ने कहा, ‘‘अनन्या मेडम के पास शिकायत करने गई है।’’
‘‘मेरा नाम तो नहीं लिखा था उसने? ..... तेरा नाम लिखते देखा था मैंने.....क्या अब मुझे दल में शामिल नहीं किया जायेगा?...अब सब चुपचाप बैठो।’’ कक्षा की लड़कियां फिर मौन होकर बैठ गई। दो मिनिट बाद अनन्या लौट आयी। खामोश बैठी लड़कियों से बोली- ‘‘परेड लीडर का नाम चुन लिया गया है।’’
‘‘कौन है?...बताओ तो जरा....’’ सभी फिर से चिल्ला उठी।
‘‘मुझे पता है पर मैं नहीं बताऊंगी। मेडम ही आकर बतायेगी। इतने में एक कागज का बना हवाई जहाज पीछे से उड़ता हुआ आया और अनन्या की टेबिल पर आ गिरा। उसने हवाई जहाज को उठाया। इस पर अनन्या का कार्टून बना हुआ था। बिखरे बालों के साथ बड़े बड़े दांत बाहर निकले हुए चेहरे के नीचे लिखा था कक्षा की मोनीटर- राक्षसनी। अनन्या ने पीछे घूमकर देखा। सब लड़कियां मुंह पर हाथ रखे मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। अनन्या को गुस्सा आ गया- ‘‘अब तो जरूरसे सबकी शिकायत करूंगी। ये हवाई जहाज भी मेडम को दिखाऊंगी।’’
‘‘मेडम को अपना ये कार्टून बताओगी अनन्या.....?’’
‘‘चुप! खामोश।’’ अनन्या पूरी ताकत से चीखी। इतने में कक्षा का दरवाजा खुला और मेडम कमलेश भीतर प्रवेश करती हुई अपनी नाराजगी जताने लगी-

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