शनिवार, 5 दिसंबर 2009

अण्डों की चोरी

गतांक से आगे -
ईल्ली के कीटाणुओं ने अपनी आबादी कई गुना बढ़ा ली थी। हर जगह उनकी कोलॉनियां बस चुकी थी। अपना फलता फूलता व्यापार देख नानी और ईल्ली बहुत खुश और संतुष्ट थी।
काम की अधिकता से नन्ही ईल्ली थक जाती थी। एक दिन जब वह थकी हुई आराम कुर्सी पर बैठी विश्राम कर रही थी तो उसे नानी ने याद दिलाया, ‘‘मेरे अण्डों का क्या हुआ ईल्ली’’ जाकर जरा देख तो आओ अब तक तो अण्डों से वयस्क मक्खियां बन चुकी होंगी। हमें भी अपने काम में मददगारों की आवश्यकता है।’’
‘‘हां नानी, ठीक याद दिलाया। अभी जाती हूं’’ कहती हुई ईल्ली ने गौशाला की ओर उड़ान भरी।
गौशाला में ईल्ली को एक भी मक्खी नजर नहीं आयी। उसे आश्चर्य हुआ। कि नानी के सौ-डेढ़ सौ अण्डों में से क्या एक भी मक्खी नहीं बन पायी। उसने अडौस-पड़ौस में पूछताछ शुरू करी साथी कीट पंतगों से पूछा तभी एक चींटे ने ईल्ली को बताया कि उसने कुछ दिन पूर्व दीमकों के तुंड सैनिको को देखा था जो बोरों में भर कर अण्डे ले जा रहे थे। हो सकता है वो अण्डे तुम्हारे ही हो। अजीब किस्म के जीव हो तुम अण्डे देने के बाद तुमने उन्हें संभाला तक नहीं चींटे ने बुरा सा मुंह बनाया और आगे बढ़ गया। नन्ही ईल्ली परेशान। उड़ती-दौड़ती चींटे के पास पहुंची-
‘‘चींटेराम, चींटेराम उन तुंड सैनिको का कुछ पता ठिकाना तो बता दो। हाय! कहां ले गये वो हमारे अण्डे।
‘‘तुम जैसी लापरवाह प्रजाति का यही हाल होता है।’’
‘‘नहीं-नहीं ऐसा मत कहो चींटेराम, कृपया मुझे दीमकों का पता बता दो। मैं उन्हें ढूंढ लूंगी।’’
‘‘वह दूर उस पेड़ पर उठे हुए टीले को देख रही हो न।’’ चींटे ने केवल इतना ही इशारा किया और आगे बढ़ गया। चींटा तो स्वभाव से ही मनमौजी था। किसी से अधिक बातचीत करना उसे पसन्द नहीं था।
नन्ही ईल्ली पेड़ के इर्द गिर्द भिनभिनाने लगी। ‘बाबा रे! यहां से वापस अण्डे लेना बहुत मुश्किल है। यह तो दीमकों का किला है। पूरा का पूरा भूमिगत, जमीन के नीचे गहराई तक फैला हुआ। जिसकी प्रत्येक सुरंग के द्वार पर रखवाली करते हुए बड़े सिर और बड़े शरीर वाले चौकन्ने पहरेदार। अब क्या किया जाय।’ वह सोचने लगी।
काफी देर सोचने के बाद भी उसे कोई उपाय नहीं सूझा। निराश हो वह लौट पड़ी। मन की निराशा के कारण उसे थकान महसूस होने लगी वह सुस्ताने के लिए पेड़ के नीचे छाया में बैठ गयी।
परेशान ईल्ली गुनगुनाने लगी।
ओ प्रकृति की रानी
सुन ले मेरी कहानी
मैं हूं एक नन्ही मुन्नी
राह बहुत मुश्किल है
काम कठिन है
हिम्मत कम है
अब तू ही बता
कैसे खुश होगी मेरी नानी
तभी उसके स्वर में स्वर मिलाता उसे
बांसुरी का स्वर सुनायी दिया वह चौंक पड़ी, ‘‘कितना अदभुत स्वर है। कौन है यह बांसुरी वादक’’ ईल्ली ने देखा ऊपर पेड़ के पत्ते पर बैठा वही चींटराम बांसुरी की मधुर तान छेड़े हुए है।
ईल्ली की आंखे छलछला आयी। उसका गीत गाना बंद हो चुका था। उसे चुप देख चींटेराम ने भी बांसुरी बजानी बंद कर दी।
‘‘अण्डे मिले नन्ही मक्खी।’’
किन्तु ईल्ली मौन थी उसकी सिसकी नीरव वातावरण में गूंज उठी। उसकी पीली घेरदार पोशाक आंसुओं से भीग चुकी थी। उसका यह हाल देख चींटाराम को दया आ गई। वह पेड़ के पत्ते से नीचे उतर आया।
‘‘मैं जानता हूं तुम दीमक के किले तक नहीं पहुंच सकती आओ मेरे पीछे-पीछे आओ।’’ कहता हुआ चींटा बांसुरी बजाता आगे चल पड़ा। ईल्ली उसके पीछे थी।
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दीमक राजा और कैदी ईल्ली

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

एक दुर्घटना



गतांक से
आगे -

ईल्ली और नानी बगीचे की ओर जा रही थी। रास्ते में ईल्ली की ट्रक खराब हो गई। नानी आगे निकल चुकी थी इसलिए ईल्ली अकेली रह गई। रास्ता सुनसान था। ईल्ली ने ट्रक को ठीक करने की काफी कोशिश की किन्तु ट्रक चालू नहीं हुआ। अंधेरा छाने लगा था। ईल्ली इधर उधर जगह तलाशने लगी। चिन्ता में डूबी ईल्ली चक्कर काट रही थी कि एक वाहन से टकरा गई और बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी।
इत्तफाक से खिता टिड्डे ने ईल्ली को टकराकर, गिरते हुए देख लिया था। वह बेहोश ईल्ली को अपने तम्बू में ले आया।
टिड्डी दल के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने ईल्ली का इलाज शुरू कर दिया। उसके पंखों पर सबसे अधिक चोटे आयी थी। डॉक्टरों ने पंखों पर मलहम लगाकर पट्टियां बांध दी।
कुछ देर बाद ईल्ली को होश आया वह कराही, ‘‘मैं कहां हूँ?’’
‘‘सेनानायक खिता को सूचित किया जाय। इस मक्खी को होश आ रहा है’’ डॉक्टर टिड्डे ने नर्स टिड्डी को आदेश दिया और पुन: उपचार में जुट गया।
ईल्ली को होश आ चुका था। उसने अपने आपको टिड्डी डॉक्टरो से धिरा पाया जो उसके पांवों पर पट्टियां बांध रहे थे। उसके अंग प्रत्यंग में दर्द हो रहा था। उसने देखा, ‘‘यह तो ऑपरेशन का कक्ष है। वह यहां कैसे आ गई। उसके बदन में दर्द क्यों है? और उसके पंख . . . . . ’’ तभी सामने सेनानायक खिता को आता देख वह चौंकी -खिता तुम?
‘‘हां ईल्ली मैं खिता। तुम्हारा एक्सीडेन्ट हो गया था और तुम बेहोश होकर गिर पड़ी थी। मैं ही तुम्हें यहां उठा लाया। खिता के कहने के साथ ही ईल्ली को सब याद आने लगा कि कैसे बीच रास्ते उसकी ट्रक खराब हो गई और वह नानी से बिछुड़ गई-
ओह! तो नानी मुझे न पाकर परेशान हो रही होगी। ईल्ली को चिन्ता हुई।
‘‘मैंने तुम्हारी नानी के पास सूचना भिजवा दी है। सुबह तक वह आ जायेगी।’’ खिता ने आगे कहां, ‘‘तुम आराम करो ईल्ली। तुम्हारे पंखों पर सबसे अधिक चोट लगी है। किन्तु तुम धीरज रखो। हमारे कुशल चिकित्सक पंखों का ईलाज करने में बहुत होशियार है। तुम जल्दी ही ठीक होकर उड़ान भरने लगोगी . . . . . ’’
‘‘. . . . .और मेरी सुरीली आवाज?’’ ईल्ली को आशंका हुई कि कहीं चोट के कारण उड़ते समय पंखों से भिनभिनाहट की आवाज न हुई तो।?
‘‘यह ठीक होने पर ही मालूम होगा ईल्ली कि तुम्हारे पंख पहले जैसी सुरीली आवाज में कम्पन कर पाते है या नहीं। वैसे हम पूरी कोशिश में जुटे है कि तुम्हारा मधुर स्वर बना रहे।’’ एक टिड्डे डॉक्टर ने ईल्ली को सांत्वना देते हुए कहा।
‘‘ओह! धन्यवाद डॉक्टर।’’ ईल्ली ने डॉक्टर से कहा फिर वह खिता से कहने लगी। ‘‘मैं तुम्हारी भी आभारी हूँ खिता। सचमुच तुम एक दयालु और नेक टिड्डे हो।’’
टिड्डे डॉक्टरों और नर्स टिड्डियों के सामने एक सुन्दर मक्खी से अपनी प्रशंसा सुन खित टिड्डा फूला नहीं समाया। खुश हो वह गीत गुनगुनाने लगा।

कल होगी एक सुन्दर सुबह
ताजी बहेगी हवाएं
उड़न झूलों पर हवा बैठकर आयेगी
एक सलोनी मक्खी को
संग अपने उड़ा ले जायेगी
उसकी पोशाक का
लाल पीला रंग
दूर आसमान में
पतंग बन
लहर लहर लहरायेगा।
कल होगी एक सुन्दर सुबह इन्द्रधनुष पुल बनायेगा
सतरंगे रंग आसमान में छितरायेगा।
एक सलोनी मक्खी को
संग अपने उठा ले जायेगा
इन्द्रधनुष पर बैठी
ईल्ली रानी
को देख हर कोई ललचायेगा
कल होगी एक सुन्दर सुबह
मधुरम, सुनहरी किरणे
अपने रथ में बिठायेगी
दूर गगन में
हीरे जैसी ईल्ली चमचमायेगी।
कल होगी एक सुन्दर सुबह
ईल्ली रानी पंख फैला उड़ जायेगी।
खिता के मधुर गीत से ईल्ली का दर्द कम होने लगा था। खिता ने मन भरकर गीत गाया। वह इससे बढ़कर भला ईल्ली की और क्या मदद कर सकता था। दर्द बांट ही तो सकता था। हुआ भी यही ईल्ली अपने आपको काफी स्वस्थ महसूस कर रही थी।
‘‘तुम्हें भूख लगी होगी ईल्ली परन्तु हमारे यहां तो सिर्फ हरे पत्ते हीं है खाने के लिए. . .’’ खिता बोला।
‘‘नहीं खिता मैं पत्तों का पर्णहरित नहीं खाती। क्या तुम नहीं जानते कि हम मक्खियों का भोजन अलग तरह का होता है और लेती भी अलग ढंग से है।’’
‘‘मुझे मालूम है ईल्ली तुम केवल तरल रूप में भोजन को चूस सकती हो। परन्तु तुम्हारे लिए अंधेरे में भोजन लाना बहुत मुश्किल है।’’
‘‘ओह खिता! फिर तो मुझे भूख के मारे नींद नहीं आयेगी।’’ ईल्ली की बात सुन खिता को अफसोस हुआ। परन्तु किया क्या जा सकता था। अब जैसे तैसे रात तो गुजारनी ही थी। खिता रात गुजारने के लिए ईल्ली को अपनी यात्राओं के रोचक वर्णन सुनाने लगा।
कहानी खिता की
ईल्ली तुम्हें मालूम है हम अफ्रीका के रहने वाले है। भोजन की खोज में हमारे विशाल दल दूर-दर तक निकल जाते हैं।
‘‘तुम्हारें दल में कितनी टिड्डियां है खिता?’’ ईल्ली ने पूछा।
‘‘हमारी गिनती का हिसाब अलग तरह से होता है ईल्ली। एक वर्ग किलोमीटर में करीबन पांच करोड़ टिड्डियां होती है। हमारे दल के विस्तार का अब तुम ही अनुमान लगा लो। हमारा दल एक सौ पचास वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दिन में जब हम एक साथ उड़ती है तो सूरज भी छिप जाता है। एक बार लाल सागर पार करते समय हमारा दल पांच हजार वर्ग किलोमीटर तक फैल गया था।
इसी बात से तुम हमारे द्वारा हरी वनस्पति खाने की ताकत का पता लगा सकती हो। हम जहां भी आक्रमण करते है वहां की खड़ी की खड़ी फसल समूल नष्ट हो जाती है। एक पत्ता तक नहीं बचता। अकाल की स्थिति बन जाती है।
ओह! तुम्हारा टिड्डी दल तो बहुत ताकतवर है खिता। इस हिसाब से तुम प्रतिदिन कितनी ताजी वनस्पति खा जाते हो?
हम लोग करीबन 100 टन वनस्पति का भक्षण एक दिन में कर डालते हैं।
आश्चर्यजनक खिता आश्चर्यजनक। तुम लोग बहुत खाते हो।
हाँ ईल्ली हमें परिश्रम भी तो बहुत करना पड़ता है। हम बिना रूके लगातार पंद्रह से सत्रह घंटे तक उड़ सकते है। एक हजार किलोमीटर से लेकर पन्द्रह हजार किलोमीटर तक की दूरी तय करना हमारे लिए दुष्कर कार्यं नहीं है। विस्मय से गिरी ईल्ली को खिता आगे बताने लगा-
एक बार की बात सुनाई ईल्ली हमारे दल ने अफ्रीका के तट से अटलांटिक महासागर के लिए उड़ान भी। तब मैं सेनानायक नहीं था। नया-नया ही उड़ना सीखा था धीरे उड़ने के कारण मैं और मेरे जैसे कुछ साथी हमारे दल से पीछे छूट गये और रास्ता भटक गये।
‘‘तब?’’ ईल्ली ने उत्सुकता से पूछा।
तब क्या करते। मैंने उस समय सबका नेतृत्व किया। कुछ दूर उड़ने के बाद हमें एक जलयान नजर आया। वहां अपने साथियों सहित उतर कर विश्राम किया।
उस जलयान के रोचक संस्मरण तुम सुनोगी तो दंग रह जायेगी।
‘‘प्लीज खिता सुनाओं न! मुझे बहादुरी से भरे किस्से बहुत पसन्द हैं। मैं बहादुरों का न केवल आदर करती हूँ बल्कि उन्हें प्यार भी करती हूँ।
हां तो ईल्ली सुनो उस विराट जलयान में खाने के नाम पर हरी वनस्पति का एक पत्ता भी नहीं था। ऐसे में हमारे साथ थी एक मादा टिड्डी। उसे अण्डे देने थे। इसके लिए हमें वहां एक-डेढ़ महीना बिना भोजन के ठहरना पड़ा।
शायद तुम्हें मालूम नहीं हमारी जाति की मादा टिड्डी एक बार में अस्सी से लेकर 150 तक अंडे देती है। जिनसे लगभग पन्द्रह दिन बाद बच्चे निकल आते है जिन्हें हम फुदक कहते हैं।
फुदक! फुदक क्यों खिता?
क्योंकि बच्चे उड़ नहीं सकते। तीन सप्ताह बाद जब वह बड़े हो जाते है तब ही उन्हें उड़ना आता है। इससे पहले वह सिर्फ फुदकते रहते है अत: हम लोग उन्हें प्यार से फुदक ही कहते है।
ईल्ली हंसने लगी।
‘‘बड़ा अच्छा लगता है सुनने में बच्चों का नाम ‘फुदक’ ‘फुदक’ ‘फुदक’ दो तीन बार कहती हुई ईल्ली फिर हंस दी।
ईल्ली को हंसता देख खिता टिड्डा खिलखिला पड़ा। दुर्घटना ग्रस्त ईल्ली का मन बहला कर खिता को खुशी हो रही थी। इस तरह की बातों से कभी आश्चर्य तो कभी हंसते हुए पूरी रात गुजर गई।
सूरज की पहली किरण ने उनके तम्बू को छुआ। सुबह के उजाले को देख ईल्ली के हाथ पांवों में हरकत होने लगी। उनकी अकड़न खुलने लगी थी। दोनों हाथों को ऊपर किए आलस तोड़ती हुई ईल्ली खिता से बोली-
तुममें अच्छे मित्र के सभी गुण है खिता। दर्द और भूख के दौरान तुमने पूरी रात मुझे रोचक संस्मरण सुनाकर आसान कर दी। तुमने मेरी काफी मदद की खिता। तुम्हारा अहसान में कभी नहीं भूलूंगी। मैं अपनी डायरी में तुम्हारे रोचक संस्मरणों को जरूर लिखूंगी।
टिड्डी डॉक्टरों ने ईल्ली ने पंखों पर बंधी पट्टियां खोल दी ईल्ली ने पंख फड़फड़ाये। वह उड़ने के लायक हो चुके थे। बाहर नानी भी उसे लेने आ चुकी थी।
दोनों मक्खियों ने खिता टिड्डे को अलविदा कहा ईल्ली के जाने से खिता दुखी होने लगा इस पर वह बोली, ‘‘जीवन रहा तो फिर कभी मिलेंगे खिता। मित्र से मिलने पर खुशी होती है तो बिछुड़ने पर दुख भी। जिसे हमें झेलना ही होगा। शायद जीवन इसी का नाम है।’’ कहती हुई ईल्ली ने मुस्कुराने की नाकाम कोशिश की।
एक छोटी मक्खी की इतनी बड़ी बात सुन खिता ने भरे नेत्रो से ईल्ली को विदा दी।
घर पहुंच कर ईल्ली नानी के साथ अपने व्यापार में व्यस्त हो गई। सुबह जल्दी ही घर से निकलती थी और अंधेरा होने से पहले घरों को लौटती थी।

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शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

खिता से एक मुलाकात


गतांक से आगे -
इतने में नौकरानी मक्खी ने आकर सूचना दी कि, ‘‘आपसे मिलने एक टिड्डा आया है। वह आपसे कुछ खुफिया बात करना चाहता है।’’ इस पर रानी मक्खी ने उसे अन्दर भेज देने का आदेश दिया। नौकरानी मक्खी ने टिड्डे को अन्दर भेज दिया। सिर झुकाकर टिड्डा बोला-
‘‘नमस्ते रानी मक्खी। मैं अफ्रीका का प्रवासी यूथी टिड्डे दल का नायक ‘खिता’ हूं। हम लोग फसलों पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे है। चूंकि यह आपका क्षेत्र है इसलिए आपको सूचना देना आवश्यक समझा गया।’’
मान्य खिता, तुम फसलों पर आक्रमण क्यों करना चाहते हो? जानते नहीं आज के वैज्ञानिक युग में तुम्हें मार भगाने के कई तरीके ढूंढ लिए गये है। वे लोग तुम्हें मारने के लिए वायुयान से जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते है। जिससे न केवल तुम्हें बल्कि हमें भी खतरा रहेगा।’’ नानी मक्खी कुछ रूककर आगे बोली बेहतर यहीं है कि तुम चले जाओ। वर्ना तुम्हारे साथ हम भी मारी जायेंगी। क्योंकि तुम्हारी जितनी तेज गति से हम नहीं भाग सकती।
यह सुन खिता बोला, ‘‘रानी मक्खी हमारी विवशता को समझो। इस बार वर्षा अच्छी होने से फसलें अच्छी हुई है। हरी-हरी पत्तियों का पर्णहरित हमें बहुत पसन्द है। हमारा दल कल ही खेतों की ओर कूच कर जायेगा। और संभावना है कि दो तीन दिन में धावा बोल देगें। तुम लोग घरेलू मक्खियां हो बस्ती की ओर भाग जाना, खेतों की ओर मत जाना।’’
‘‘तुम्हारे इस आक्रमण से मेरा तो सारा व्यापार ही चौपट हो जायेगा। मैं कैसे अपने कीटाणुओं को जहरीले कीटनाशकों से बचा पाऊंगी। ईल्ली बेटी तुम ही समझाओ इसे कुछ।’’ रानी मक्खी ने ईल्ली की ओर देखकर कहा। इस पर ईल्ली ने खिता से कहा-
‘‘खिता क्या तुम 10-15 दिन नहीं ठहर सकते। प्लीज मेरे खातिर खिता वर्ना हमारे अण्डे भी बेकार हो जायेगे और हमें कई ट्रक कीटाणुओं का नुकसान होगा सो अलग।’’ ईल्ली ने खिता से इतने मोहक ढंग से आग्रह किया कि खिता इनकार नहीं कर सका।
‘‘सुन्दरी ईल्ली, तुम सुन्दर ही नहीं विनम्र भी हो। विनम्र स्वभाव वाला दूसरों का मन जीत सकता है। तुम्हारी बात मुझे स्वीकार है।’’ इतना कहने के बाद खिता उड़ने को हुआ किन्तु ईल्ली ने उसे शर्बत पिलाना चाहा तो नानी ने टोक दिया।’’ भला टिड्डे कहां जानते है मीठा शर्बत पीना वो तो बस चबर-चबर हरी पत्तियां चबाना जानते है। जानवरों की तरह।’’ कहकर हो! हो!! कर नानी हंस पड़ी ईल्ली को नानी का बेसमय हंसना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
खिता के बात मान लेने से यूथी टिड्डी दल के कारण आया संकट एक बार टल चुका था। ईल्ली और नानी फिर भविष्य की योजनाओं में व्यस्त हो गई। आज उन्हें कई ट्रक कीटाणुओं के कच्ची बस्ती में खाली करने थे। ट्रक के काफिले के साथ वह अपने माल को ले कच्ची बस्ती की ओर निकल पड़ी।
वहां उन्होंने पेचिश, तपेदिक और कुष्ठ रोगों के कीटाणुओं की खूब बिक्री की मुंहमांगी कीमत पर उन्होंने टाईफाईड के कीटाणु बेचे। उनके पास अभी काफी माल था किन्तु शाम होने से पहले उन्हें अन्य जगह भी कीटाणुओं को पहुंचाना था। अत: सभी कीटाणुओं को कोलोनी बसा लेने का आदेश दे वह ट्रको का काफिला लेकर आगे चल दी।
अच्छी जगह पाकर कीटाणु भी बहुत खुश थे। काफी समय से अच्छे वातावरण और भोजन के अभाव में खोल में बंद जीवन काट रहे थे। अब वह फटाफट अपनी संख्या बढ़ाकर आबादी बढ़ा लेंगे। विभिन्न तरह की दवाओं के आने से उनके जीवन को कई खतरे थे। अक्सर उनके बीच आयोजित गोष्ठियों में इसी विषय की चर्चा रहती - उन्हें चिन्ता थी कि यदि यही हाल रहा तो एक दिन वे समूल नष्ट हो जायेगें।
ऐसे में मक्खियां उन्हें हमेशा दिलासा देती। वे सब मक्खियों के आभारी थे वे न होती तो भला वे एक जगह से दूसरी जगह कैसे पहुंच पाते।

अगले अंक में पढे़ - एक दुर्घटना

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

नानी के अण्डे

गतांक से आगे -
‘‘नानी क्या बिना सही मौसम के भी तुम अण्डे दे सकती हो?’’ ईल्ली ने प्रश्न किया।
‘‘लगता है तुमने आज का अखबार नहीं देखा। उसमें मौसम विभाग के अनुसार अभी कुछ दिनों तक तेज गर्मी पड़ने का समाचार छपा है। तुम तो जानती ही हो कि हमारी प्रजाति केवल गर्मी और बसन्त ऋतु में ही अण्डे देती है। अत: अब गर्मी पड़ने की बात पढ़कर मैंने समय का उपयोग कर अण्डे देने की योजना बना ली है। आओ अब उपयुक्त जगह तलाशते है।’’ कहते हुए नानी मक्खी ने उड़ान भरी। पीछे-पीछे ईल्ली भी उड़ चली।
रास्ते में नानी ईल्ली से कहने लगी, ‘‘वैसे तो मुझे घोड़े की लीद, मुर्गियों की बीट, मनुष्य का मल, सड़े-गले फल और सब्जियों में अण्डे देना बहुत पसन्द है किन्तु. . . . . . .’’
‘‘किन्तु क्या नानी
‘‘वहां अण्डों के नष्ट होने का खतरा रहता है, आओ हम उस गौशाला की ओर चलते है।’’
दोनो मक्खियां वहां पहुंचती है जहां गोबर का विशाल ढेर लगा हुआ है जिसे देखकर नानी खुश होती हुई कहती है, ‘‘यहां मेरे बच्चे आसानी से पलेंगे। पांच सौ से लेकर छ: सौ अण्डे मैं एक ही बार में दे दूंगी।’’
‘‘बस इतने ही अण्डे नानी?’’
‘‘हां, बस एक बार में हमारी प्रजाति इतने ही अण्डे दे सकती है।’’ और नानी ने अण्डे देना शुरू किया। अभी उसने कुल सौ-डेढ़-सौ अण्डे ही दिये होंगे कि एक मेढ़की की नजर उस पर पड़ती है। घात लगाए वह आगे बढ़ती है और नजदीक और नजदीक पहुंचती जाती है जहां नानी मक्खी अण्डे दे रही थी। ईल्ली ने मेढ़की को आगे बढ़ते देख लिया था वह अपनी नानी को सतर्क कर पाती इससे पूर्व ही मेढ़की लसलसी जीभ एक झटके से बाहर निकलती है।
‘‘बाप-रे · ·’’ कहती हुई नानी उड़ी और उसके साथ-साथ ही ईल्ली भी। दोनो हांफती हुई घर पहुंचती है। घर नानी को मीठा पेय पीने को दिया जाता है, तब वह पुन: स्फूर्ति महसूस करती है। ईल्ली नानी के पंखों को सहलाती है।

अगले अंक में पढे़ - खिता से एक मुलाकात

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

ईल्ली और एनाफिलीज सिस्टर

वाह! वाह! नानी, तुम्हारे यहां तो कीटाणु व्यापार की काफी संभावनाएं है।
इतने में पीछे से गूं-गूं की सुरीली आवाज आई। ईल्ली चौंकी।
‘‘नमस्ते रानी मक्खी। यह कौन मेहमान साथ लायी हो?’’
‘‘पराई कोई नहीं, मेरी बेटी की बेटी है एनाफिलीज सिस्टर।’’ एनाफिलीज नाम सुनकर ईल्ली को आश्चर्य हुआ।
‘‘यह कोई विदेशी नागरिक है?’’
‘‘नहीं बेटी, इसका सिर्फ नाम ही विदेशी है। इसके माता-पिता ने रख दिया जो चल रहा है। रहती यह हमारे देश में ही है। इसका और हमारा धन्धा एक ही है।’’
‘‘धन्धा एक ही है क्या मतलब? क्या ये भी कीटाणुओं की व्यापारी है?’’
‘‘हां, बस फर्क इतना है कि हम कई तरह के कीटाणुओं का व्यापार मौसम के अनुसार करती है किन्तु एनाफिलीज मच्छर केवल एक ही तरह के कीटाणुओं की व्यापारिन है। बरसात के मौसम में इसका धन्धा जोरों पर चलता है।
इसके पास एक ही कीटाणु है ‘मलेरिया पैरेसाईट’। बस उसी को पेट में लिए घूमती है।’’
‘‘पेट में नानी?’’
हां-हां पेट में। इसके आमाशय में कीटाणु अपना आधा जीवन पूरा करते है। फिर मनुष्यों तक पहुंचाने के लिए इसे उन्हें काटना पड़ता है। बड़े जोखिम का काम है।
कई बार बेचारी काटते वक्त पकड़ी जाती है। इसके कुछ चालाक साथी तो उड़ जाते है और कुछ बचारे बेमौत मारे जाते है।
‘‘बहन, एनाफिलीज कोई और तरीका क्यों नहीं ढूंढ लेती तुम कीटाणु पहुंचाने का। ‘‘ईल्ली ने एनाफिलीज से कहा। ‘‘कीटाणु मुझे मनुष्य के खून में पहुंचाने होते है। जो सिर्फ मेरे मुंह से लार द्वारा ही जा सकते है। इसके लिए पहले मनुष्य की त्वचा को भेदना होता है। फिर हमारा भोजन भी मनुष्य का खून ही है। खून चूसने के साथ ही हम अपनी लार के जरिए कीटाणु छोड़ देती है।’’
‘‘तुम्हारे धन्धे में बहुत खतरा है’’ ईल्ली बोली एनाफिलीज कहने लगी- ‘‘टी.वी. नहीं देखती तुम ? रोज नित नए डाकुओं के विज्ञापन मेरे विनाश के लिए निकलते रहते है। कभी ये लगाओ, कभी वो लगाओ। कभी ये जलाओ, कभी वो जलाओ। ऐसे भगाओ वैसे भगाओ जाने कितनी तरह की मुसीबतें हमें अकेले झेलनी पड़ती है।’’
‘‘अकेले क्यों बहन? क्या तुम्हारे घर के मर्द काम नहीं करते?’’
‘‘अरे नहीं, हमारे मर्द न काम के न काज के दुश्मन अनाज के सारे दिन फूलों और फलों का रस चूसते रहते है। सिर्फ अपना पेट भरने का काम करते है। पेटू कहीं के, कभी-कभी हमें भी फंसा देते है।
एक हम मादा एनाफिलीज ही हैं जो बच्चों की तरह कीटाणुओं को पेट में पालती भी है और धन्धा भी करती हैं।’’
‘‘इनके व्यापार की एक खास बात जानती हो ईल्ली, तुम?’’ इतनी देर से चुप बैठी नानी बोली।
‘‘वो क्या नानी?’’
एक बार जो यह एनाफिलीज बहन एक स्वस्थ आदमी को काट ले और अपने कीटाणु जिसे ये प्लाज्मोडियम कहती है, मलेरिया फैलाने में कामयाब हो जाये तो इसकी अन्य साथिन बहनें उसी बीमार आदमी का खून चूसकर वापस कई कीटाणुओं को अपने पेट में भर लाती है। फिर इसके आमाशय की दीवारों में वे कीटाणु अपना आधा जीवन चक्र पूरा करते है।’’
‘‘क्या मतलब नानी?’’
‘‘मतलब यह कि इसके कीटाणु आधा जीवन चक्र मनुष्य के शरीर में और आधा जीवन चक्र इसके शरीर में पूरा करते हैं।’’
‘‘सचमुच आश्चर्यजनक है इनकी व्यापार शैली।’’
‘‘हां ईल्ली नानी ठीक कह रही है। हमारी çजाति के और भी मच्छर होते है जो दूसरी तरह के कीटाणुओं के व्यापारी है।
‘‘कौन-कौन है? जरा, मुझे भी बताना।’’ ईल्ली ने कौतूहल से पूछा।
‘‘क्यूलेक्स और एडीस’’
‘‘क्या सभी मच्छरों के नाम अंग्रेजी में होते है।’’ ईल्ली ने पूछा।
‘‘हां, वैज्ञानिकों ने रख दिये है। ‘‘वैसे नाम से क्या फर्क पड़ता है अंग्रेजी के हो या हिन्दी के हमें तो अपने व्यापार से मतलब। क्यूलेक्स मच्छर, डेंगू ज्वर और फीलपांव के कीटाणुओं का व्यापारी है। एडीस के पास पीत ज्वर के कीटाणु मिलते है।
‘‘तुम रहती कहां हो एनाफिलीज?’’
‘‘वो वहां दूर दलदल में। दरअसल मुझे नम जगह बेहद पसन्द है। वहां मुझे अण्डे देने में सुविधा भी रहती है। अब तुम ही देखो न! मैं एक बार में करीबन दो सौ से लेकर चार सौ तक अण्डे देकर निश्चित हो जाती हूं। फिर यही दलदल उन्हें पालता है। यहीं मेरे अण्डो में से लार्वा निकलता है और लार्वा से प्यूपा बनता है। मुझे उन्हें संभालने नहीं पड़ते।
अब तुम ही बताओ बहन, व्यापार करूं या बच्चे संभालू? एनाफिलीज अपनी स्कर्ट ठीक करती हुई बोली, अच्छा अब चलती हूं। कहीं दुश्मनों ने देख लिया तो पकड़ कर मसल ही डालेंगे।
अच्छा! अलविदा बहन फिर कभी मिलेगे। कहकर वे जुदा हो गई।
ईल्ली को आज मच्छर जाति के बारे में रोचक बाते जानने को मिली। सोच रही थी घर जाकर उन्हें जल्दी से डायरी में उतार ले। अत: उसने नानी से घर चलने का अनुरोध किया और दोनों मक्खियां घर की ओर अड़ चली।
रात नानी तो सो गई पर ईल्ली लैम्प की मद्धिम रोशनी में आज की डायरी लिखने में व्यस्त हो गई। इस बीच वह कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।
सुबह नानी ने ईल्ली को उठाया और उसके सामने नक्शा फैलाते हुए कहने लगी-
‘‘देखो ईल्ली यह हरे निशान वाली जगहों पर हमें अपने कीटाणुओं की बस्ती बसानी है। ताकि उनकी आबादी बढ़ाई जा सके। खतरों वाली सारी जगहों को मैंनें लाल घेरे में ले लिया है। ये वो निशान है जहां हमारे ऐजेन्ट काली वर्दी में तैनात रहेंगे।
अच्छा अब हम चलते हैं, मैंने आज का दिन अण्डे देने के लिए चुना है. . . . .

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

ईल्ली और नानी

केशू पांचवीं कक्षा के आगे पढ़ नहीं सका क्योंकि वह अनाथ हो गया था। अकेले, निराश्रित केशू को पुस्तकों की दुकान वाले दयाल बाबू ने अपने यहां रख लिया। उसके चारों ओर विभिन्न विषयों की ढ़ेर सारी पुस्तके थी। वह एक-एककर इन सभी को पढ़ लेना चाहता था। यही सोच दुकान से लौटते समय वह एक पुस्तक घर ले आया जिसका नाम था ‘‘ईल्ली और नानी’’ सबके सो जाने के बाद बरामदे में जल रही मद्धिम रोशनी में वह पुस्तक पढ़ने लगा।
एक थी नन्ही मक्खी, नाम था ईल्ली, उसकी मां कीटाणुओं की व्यापारिन थी। उसके पास कई ट्रक थे जिनमें लादकर वह कीटाणुओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया करती। बाजार में कभी पेचिश के कीटाणु की मांग होती तो कभी हैजा के कीटाणु की, मौसम बदलते ही कीटाणुओं की मांग बदल जाया करती थी।
ऐसे ही एक दिन ईल्लीकी मां कीटाणुओं के ट्रक लादकर व्यापार करने गई। पीछे से ईल्ली को नानी का तार मिला।
‘‘फटाफट चली आओ, यहां बहुत वर्षा हुई है। गढ्ढे पोखर पानी से भरे हुए है। काफी कीटाणु बिकने की संभावना है। डाईरिया के कीटाणु अधिक लाना।’’
‘ओइ! मां तो अभी तक लौटी नहीं, अब उनकी जगह मुझे ही जाना होगा। अच्छे बच्चो की तरह मुझे बड़ों के काम में हाथ बटांना चाहिए।’ यह सोच नन्ही ईल्ली ने ट्रक लादने शुरू किये। तरह-तरह के कीटाणुओं को लेकर वह चल पड़ी सौरपुर शहर की ओर।
रास्ते में कीटाणुओं से भरे ट्रक देखकर दवाई ने हमला कर दिया।
चारों ओर से घेर कर दवाई अपने गोली-केप्सूल दागने लगी। परन्तु कई कीटाणु थे बड़े होशियार उन्होंने अपने बीजों को कड़े खोल के आवरण में सुरक्षित रख छोड़ा था। हमले में काफी कीटाणु मारे गये। ईल्ली स्वंय भी किसी तरह बचती बचाती रास्ते की कठिनाईयों को पार करती हुई नानी के घर पहुंची।
नानी ईल्ली से मिलकर और ईल्ली नानी से मिलकर बहुत खुश हुई, नानी ने ईल्ली को गले लगाया। उन्होंने एक दूसरे के हालचाल पूछे व धूप भी सेंकी और अपने पंख भी झाड़े उनके बीच नये कीटाणु की चर्चा भी चली।
नानी ने ईल्ली से कहा, ‘‘आज से हम कीटाणु पहुंचाने का काम शुरू करेंगी। इससे पहले मैं चाहती हूं कि तुम घूमकर पूरे क्षेत्र का मुआयना कर लो ताकि सोच समझकर कार्य पूरी कुशलता से कर सको। क्योंकि अभी तुम एक बच्ची मक्खी हो। व्यापार की तकनीक से अपरिचित हो अत: साथ रहकर मैं तुमहें इस कला की बारीकियां समझाऊंगी।
कहने को तो यह सौरपुर शहर है यहां की नगरपालिका खूंखार है किन्तु डरने की कोई बात नहीं मैं तुमहारे साथ रहूंगी। ‘‘इतना कहकर नानी ने उड़ान भरी। साथ में ईल्ली ने भी उडान भरी।
उन्होंने उन तमाम जगहों को देखना शुरू किया जहां-जहां उनके माल अर्थात~ कीटाणुओं को अधिक मात्रा में बेचा जा सकता था।
‘‘यह देखो ईल्ली, मिठाई की दुकाने’’
‘‘हां मैं देख रही हूं नानी। मुझे मीठा बहत पसंद है।’’
ईल्ली की भोली शक्ल और मासूम जवाब सुन नानी मुस्कुरायी, ‘‘यहां कीटाणु खपत की काफी संभावना है। यह देखो ईल्ली रेलवे प्लेटफार्म, बस स्टेण्ड और इनसे लगी दुकाने शहर की अच्छी जगह है जहां भीड़ भाड़ रहती है.....’’
‘‘यह कहां आ गये हम?’’
‘‘ईल्ली हम अस्पताल आये हैं।’’
‘‘बाप रे! अस्पताल, चलो भागो नानी।’’
‘‘नहीं-नहीं डरो मत ईल्ली। कहने को यह अस्पताल है पर देख नही रही हो इसके चारों ओर बिखरे मलबे का ढ़ेर, बदबूदार शैचालय, यहां भी कीटाणु पहुंचाने की काफी गुंजाईश है। हां, कभी-कभी खतरा भी रहता है परन्तु जोखिम उठाना अपने धंधे का गुण है।’’
‘‘सो तो है नानी’’ ईल्ली बोली और वे आगे उड़ चली।
‘‘यह कौन सी जगह है नानी?’’
‘‘यह एक विद्यालय है। इसमें बच्चे पढ़ते है। वैसे यहां माल, मेरा मतलब कीटाणुओं की खपत की उम्मीद कम हैं फिर भी मैंने अपने कई गुप्तचर यहां छोड़ रखे है जब भी मौका मिला तो हम हाथ से नहीं जाने देंगी।’’
‘‘वाह! बन्दोबस्त तो बहुत अच्छा कर रखा है नानी तुमने परन्तु यहां इतनी सफाई क्यों है?’’
‘‘क्योंकि यहां के बच्चे श्रमदान करते है। स्कूल साफ सुथरा रखते है और रहते भी साफ सुथरे हैं।’’
‘‘फिर तो यहां कीटाणु पहुंचाने का काम बहुत मुश्किल है।’’
कुछ देर नानी और इल्ली उड़ती रही फिर एक जगह पहुंची।
‘‘यहां कहां ले आयी नानी!’’
‘‘ईल्ली यह सौरपुर शहर के किनारे लगी कच्ची बस्ती है, अरे यहीं तो वह खास जगह है।’’
‘‘खास जगह!’’
‘‘हां तुम खुद देखोगी तो समझ जाओगी। देखो बारिश के कारण ही नहीं बल्कि नालियों के अभाव में घरों का गंदा पानी सब जगह बिखरा पड़ा है। पसंद आया तुम्हें यह कीचड़?’’
‘‘पर नानी यहां के लोग!’’
‘‘तुम चिन्ता मत करो। यहां के लोगों को मजदूरी से ही फुर्सत नहीं’’
‘‘फिर भी नानी साफ सुथरे तो रहते होंगे।’’
ईल्ली की बात सुनकर नानी हंसी। ‘‘नहीं, ये कई दिनों तक नहाते नहीं। देख नहीं रही हो इसके खुले फोड़े फुंसी हमें खुला निमंत्रण दे रहे है। इच्छा हो रही हो तो जरा बैठकर देख लो।’’
कुछ देर दौनों वहां भिनभिनाती रही। थोड़ी देर बाद ईल्ली बोली, नानी मेरा पेट भर गया है, चलो अब आगे चलते हैं।’’
‘‘हां चलो।’’
और दोनो उड़ चली।
‘‘अब हम कहां आ पहुंचे नानी?’’
‘‘कहने को तो यह शहर पर्यटन स्थल है बिटिया। दूर-दूर से सैलानी यहां घूमने आते है। यहां के लौगो को भी घूमने का बहुत शौक है। बाहर का खाना भी बहुत पसंद करते है।
रविवार को तो यहां मेला लगा रहता है। इतनी भीड़ पड़ती है कि पूछो मत, सच ईल्ली! सजे धजे लोग पर बैठने का आनंद ही कुछ और है। और वहीं समय रहता है खास स दिन हमारे कार्य व्यापार का’’ हा! हा! हा! नानी रहस्यमयी हंसी हंसने लगी। फिर बोली-
‘‘इतना भीड़ भड़का। किसे फुर्सत जो ध्यान दे। सभी को जल्दी। उस दिन ठेले वाले के हाथ जल्दी जल्दी चलते है। मुझे तो लगता है जैसे हाथ नहीं मशीन हो। बस फटाफट फटाफट। सारी खाने की वस्तुऐं खुली रहती है। बस तभी हमें चुपके से अपना काम करना होता है। इतने कीटाणु बिक जाते है ईल्ली कि धन्धा करने का मजा आ जाता है।’’
‘‘मेरा अनुमान है कि कच्ची बस्ती से अधिक माल यहां बिकेगा। टाईफाईड के कीटाणु तो यहां हाथों हाथ बिक जायेंगे।’’
‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं बिटिया। आखिर तुम हो बड़ी समझदार मेरी औलाद जो ठहरी। चलों, वहां चलते है।’’ दोनों आगे बढ़ी।
‘‘ये वह जगह है ईल्ली जहां सब झूठन का कचरा फेंका जाता है।’’
‘‘बाप रे बाप ये तो पूरा पहाड़ बन गया है।’’
और हां, इसकी बदबू में हमारे कीटाणु बड़े आसानी से खुश होकर रहेंगे। तपेदिक के कीटाणुओं को तो मजा आ जायेगा। तुम तो अपने सारे ट्रक खाली कर यहीं गोदाम बना लेना क्योंकि महीनों यह कचरा नहीं उठने वाला।