शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

नानी के अण्डे

गतांक से आगे -
‘‘नानी क्या बिना सही मौसम के भी तुम अण्डे दे सकती हो?’’ ईल्ली ने प्रश्न किया।
‘‘लगता है तुमने आज का अखबार नहीं देखा। उसमें मौसम विभाग के अनुसार अभी कुछ दिनों तक तेज गर्मी पड़ने का समाचार छपा है। तुम तो जानती ही हो कि हमारी प्रजाति केवल गर्मी और बसन्त ऋतु में ही अण्डे देती है। अत: अब गर्मी पड़ने की बात पढ़कर मैंने समय का उपयोग कर अण्डे देने की योजना बना ली है। आओ अब उपयुक्त जगह तलाशते है।’’ कहते हुए नानी मक्खी ने उड़ान भरी। पीछे-पीछे ईल्ली भी उड़ चली।
रास्ते में नानी ईल्ली से कहने लगी, ‘‘वैसे तो मुझे घोड़े की लीद, मुर्गियों की बीट, मनुष्य का मल, सड़े-गले फल और सब्जियों में अण्डे देना बहुत पसन्द है किन्तु. . . . . . .’’
‘‘किन्तु क्या नानी
‘‘वहां अण्डों के नष्ट होने का खतरा रहता है, आओ हम उस गौशाला की ओर चलते है।’’
दोनो मक्खियां वहां पहुंचती है जहां गोबर का विशाल ढेर लगा हुआ है जिसे देखकर नानी खुश होती हुई कहती है, ‘‘यहां मेरे बच्चे आसानी से पलेंगे। पांच सौ से लेकर छ: सौ अण्डे मैं एक ही बार में दे दूंगी।’’
‘‘बस इतने ही अण्डे नानी?’’
‘‘हां, बस एक बार में हमारी प्रजाति इतने ही अण्डे दे सकती है।’’ और नानी ने अण्डे देना शुरू किया। अभी उसने कुल सौ-डेढ़-सौ अण्डे ही दिये होंगे कि एक मेढ़की की नजर उस पर पड़ती है। घात लगाए वह आगे बढ़ती है और नजदीक और नजदीक पहुंचती जाती है जहां नानी मक्खी अण्डे दे रही थी। ईल्ली ने मेढ़की को आगे बढ़ते देख लिया था वह अपनी नानी को सतर्क कर पाती इससे पूर्व ही मेढ़की लसलसी जीभ एक झटके से बाहर निकलती है।
‘‘बाप-रे · ·’’ कहती हुई नानी उड़ी और उसके साथ-साथ ही ईल्ली भी। दोनो हांफती हुई घर पहुंचती है। घर नानी को मीठा पेय पीने को दिया जाता है, तब वह पुन: स्फूर्ति महसूस करती है। ईल्ली नानी के पंखों को सहलाती है।

अगले अंक में पढे़ - खिता से एक मुलाकात

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

ईल्ली और एनाफिलीज सिस्टर

वाह! वाह! नानी, तुम्हारे यहां तो कीटाणु व्यापार की काफी संभावनाएं है।
इतने में पीछे से गूं-गूं की सुरीली आवाज आई। ईल्ली चौंकी।
‘‘नमस्ते रानी मक्खी। यह कौन मेहमान साथ लायी हो?’’
‘‘पराई कोई नहीं, मेरी बेटी की बेटी है एनाफिलीज सिस्टर।’’ एनाफिलीज नाम सुनकर ईल्ली को आश्चर्य हुआ।
‘‘यह कोई विदेशी नागरिक है?’’
‘‘नहीं बेटी, इसका सिर्फ नाम ही विदेशी है। इसके माता-पिता ने रख दिया जो चल रहा है। रहती यह हमारे देश में ही है। इसका और हमारा धन्धा एक ही है।’’
‘‘धन्धा एक ही है क्या मतलब? क्या ये भी कीटाणुओं की व्यापारी है?’’
‘‘हां, बस फर्क इतना है कि हम कई तरह के कीटाणुओं का व्यापार मौसम के अनुसार करती है किन्तु एनाफिलीज मच्छर केवल एक ही तरह के कीटाणुओं की व्यापारिन है। बरसात के मौसम में इसका धन्धा जोरों पर चलता है।
इसके पास एक ही कीटाणु है ‘मलेरिया पैरेसाईट’। बस उसी को पेट में लिए घूमती है।’’
‘‘पेट में नानी?’’
हां-हां पेट में। इसके आमाशय में कीटाणु अपना आधा जीवन पूरा करते है। फिर मनुष्यों तक पहुंचाने के लिए इसे उन्हें काटना पड़ता है। बड़े जोखिम का काम है।
कई बार बेचारी काटते वक्त पकड़ी जाती है। इसके कुछ चालाक साथी तो उड़ जाते है और कुछ बचारे बेमौत मारे जाते है।
‘‘बहन, एनाफिलीज कोई और तरीका क्यों नहीं ढूंढ लेती तुम कीटाणु पहुंचाने का। ‘‘ईल्ली ने एनाफिलीज से कहा। ‘‘कीटाणु मुझे मनुष्य के खून में पहुंचाने होते है। जो सिर्फ मेरे मुंह से लार द्वारा ही जा सकते है। इसके लिए पहले मनुष्य की त्वचा को भेदना होता है। फिर हमारा भोजन भी मनुष्य का खून ही है। खून चूसने के साथ ही हम अपनी लार के जरिए कीटाणु छोड़ देती है।’’
‘‘तुम्हारे धन्धे में बहुत खतरा है’’ ईल्ली बोली एनाफिलीज कहने लगी- ‘‘टी.वी. नहीं देखती तुम ? रोज नित नए डाकुओं के विज्ञापन मेरे विनाश के लिए निकलते रहते है। कभी ये लगाओ, कभी वो लगाओ। कभी ये जलाओ, कभी वो जलाओ। ऐसे भगाओ वैसे भगाओ जाने कितनी तरह की मुसीबतें हमें अकेले झेलनी पड़ती है।’’
‘‘अकेले क्यों बहन? क्या तुम्हारे घर के मर्द काम नहीं करते?’’
‘‘अरे नहीं, हमारे मर्द न काम के न काज के दुश्मन अनाज के सारे दिन फूलों और फलों का रस चूसते रहते है। सिर्फ अपना पेट भरने का काम करते है। पेटू कहीं के, कभी-कभी हमें भी फंसा देते है।
एक हम मादा एनाफिलीज ही हैं जो बच्चों की तरह कीटाणुओं को पेट में पालती भी है और धन्धा भी करती हैं।’’
‘‘इनके व्यापार की एक खास बात जानती हो ईल्ली, तुम?’’ इतनी देर से चुप बैठी नानी बोली।
‘‘वो क्या नानी?’’
एक बार जो यह एनाफिलीज बहन एक स्वस्थ आदमी को काट ले और अपने कीटाणु जिसे ये प्लाज्मोडियम कहती है, मलेरिया फैलाने में कामयाब हो जाये तो इसकी अन्य साथिन बहनें उसी बीमार आदमी का खून चूसकर वापस कई कीटाणुओं को अपने पेट में भर लाती है। फिर इसके आमाशय की दीवारों में वे कीटाणु अपना आधा जीवन चक्र पूरा करते है।’’
‘‘क्या मतलब नानी?’’
‘‘मतलब यह कि इसके कीटाणु आधा जीवन चक्र मनुष्य के शरीर में और आधा जीवन चक्र इसके शरीर में पूरा करते हैं।’’
‘‘सचमुच आश्चर्यजनक है इनकी व्यापार शैली।’’
‘‘हां ईल्ली नानी ठीक कह रही है। हमारी çजाति के और भी मच्छर होते है जो दूसरी तरह के कीटाणुओं के व्यापारी है।
‘‘कौन-कौन है? जरा, मुझे भी बताना।’’ ईल्ली ने कौतूहल से पूछा।
‘‘क्यूलेक्स और एडीस’’
‘‘क्या सभी मच्छरों के नाम अंग्रेजी में होते है।’’ ईल्ली ने पूछा।
‘‘हां, वैज्ञानिकों ने रख दिये है। ‘‘वैसे नाम से क्या फर्क पड़ता है अंग्रेजी के हो या हिन्दी के हमें तो अपने व्यापार से मतलब। क्यूलेक्स मच्छर, डेंगू ज्वर और फीलपांव के कीटाणुओं का व्यापारी है। एडीस के पास पीत ज्वर के कीटाणु मिलते है।
‘‘तुम रहती कहां हो एनाफिलीज?’’
‘‘वो वहां दूर दलदल में। दरअसल मुझे नम जगह बेहद पसन्द है। वहां मुझे अण्डे देने में सुविधा भी रहती है। अब तुम ही देखो न! मैं एक बार में करीबन दो सौ से लेकर चार सौ तक अण्डे देकर निश्चित हो जाती हूं। फिर यही दलदल उन्हें पालता है। यहीं मेरे अण्डो में से लार्वा निकलता है और लार्वा से प्यूपा बनता है। मुझे उन्हें संभालने नहीं पड़ते।
अब तुम ही बताओ बहन, व्यापार करूं या बच्चे संभालू? एनाफिलीज अपनी स्कर्ट ठीक करती हुई बोली, अच्छा अब चलती हूं। कहीं दुश्मनों ने देख लिया तो पकड़ कर मसल ही डालेंगे।
अच्छा! अलविदा बहन फिर कभी मिलेगे। कहकर वे जुदा हो गई।
ईल्ली को आज मच्छर जाति के बारे में रोचक बाते जानने को मिली। सोच रही थी घर जाकर उन्हें जल्दी से डायरी में उतार ले। अत: उसने नानी से घर चलने का अनुरोध किया और दोनों मक्खियां घर की ओर अड़ चली।
रात नानी तो सो गई पर ईल्ली लैम्प की मद्धिम रोशनी में आज की डायरी लिखने में व्यस्त हो गई। इस बीच वह कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।
सुबह नानी ने ईल्ली को उठाया और उसके सामने नक्शा फैलाते हुए कहने लगी-
‘‘देखो ईल्ली यह हरे निशान वाली जगहों पर हमें अपने कीटाणुओं की बस्ती बसानी है। ताकि उनकी आबादी बढ़ाई जा सके। खतरों वाली सारी जगहों को मैंनें लाल घेरे में ले लिया है। ये वो निशान है जहां हमारे ऐजेन्ट काली वर्दी में तैनात रहेंगे।
अच्छा अब हम चलते हैं, मैंने आज का दिन अण्डे देने के लिए चुना है. . . . .

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

ईल्ली और नानी

केशू पांचवीं कक्षा के आगे पढ़ नहीं सका क्योंकि वह अनाथ हो गया था। अकेले, निराश्रित केशू को पुस्तकों की दुकान वाले दयाल बाबू ने अपने यहां रख लिया। उसके चारों ओर विभिन्न विषयों की ढ़ेर सारी पुस्तके थी। वह एक-एककर इन सभी को पढ़ लेना चाहता था। यही सोच दुकान से लौटते समय वह एक पुस्तक घर ले आया जिसका नाम था ‘‘ईल्ली और नानी’’ सबके सो जाने के बाद बरामदे में जल रही मद्धिम रोशनी में वह पुस्तक पढ़ने लगा।
एक थी नन्ही मक्खी, नाम था ईल्ली, उसकी मां कीटाणुओं की व्यापारिन थी। उसके पास कई ट्रक थे जिनमें लादकर वह कीटाणुओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया करती। बाजार में कभी पेचिश के कीटाणु की मांग होती तो कभी हैजा के कीटाणु की, मौसम बदलते ही कीटाणुओं की मांग बदल जाया करती थी।
ऐसे ही एक दिन ईल्लीकी मां कीटाणुओं के ट्रक लादकर व्यापार करने गई। पीछे से ईल्ली को नानी का तार मिला।
‘‘फटाफट चली आओ, यहां बहुत वर्षा हुई है। गढ्ढे पोखर पानी से भरे हुए है। काफी कीटाणु बिकने की संभावना है। डाईरिया के कीटाणु अधिक लाना।’’
‘ओइ! मां तो अभी तक लौटी नहीं, अब उनकी जगह मुझे ही जाना होगा। अच्छे बच्चो की तरह मुझे बड़ों के काम में हाथ बटांना चाहिए।’ यह सोच नन्ही ईल्ली ने ट्रक लादने शुरू किये। तरह-तरह के कीटाणुओं को लेकर वह चल पड़ी सौरपुर शहर की ओर।
रास्ते में कीटाणुओं से भरे ट्रक देखकर दवाई ने हमला कर दिया।
चारों ओर से घेर कर दवाई अपने गोली-केप्सूल दागने लगी। परन्तु कई कीटाणु थे बड़े होशियार उन्होंने अपने बीजों को कड़े खोल के आवरण में सुरक्षित रख छोड़ा था। हमले में काफी कीटाणु मारे गये। ईल्ली स्वंय भी किसी तरह बचती बचाती रास्ते की कठिनाईयों को पार करती हुई नानी के घर पहुंची।
नानी ईल्ली से मिलकर और ईल्ली नानी से मिलकर बहुत खुश हुई, नानी ने ईल्ली को गले लगाया। उन्होंने एक दूसरे के हालचाल पूछे व धूप भी सेंकी और अपने पंख भी झाड़े उनके बीच नये कीटाणु की चर्चा भी चली।
नानी ने ईल्ली से कहा, ‘‘आज से हम कीटाणु पहुंचाने का काम शुरू करेंगी। इससे पहले मैं चाहती हूं कि तुम घूमकर पूरे क्षेत्र का मुआयना कर लो ताकि सोच समझकर कार्य पूरी कुशलता से कर सको। क्योंकि अभी तुम एक बच्ची मक्खी हो। व्यापार की तकनीक से अपरिचित हो अत: साथ रहकर मैं तुमहें इस कला की बारीकियां समझाऊंगी।
कहने को तो यह सौरपुर शहर है यहां की नगरपालिका खूंखार है किन्तु डरने की कोई बात नहीं मैं तुमहारे साथ रहूंगी। ‘‘इतना कहकर नानी ने उड़ान भरी। साथ में ईल्ली ने भी उडान भरी।
उन्होंने उन तमाम जगहों को देखना शुरू किया जहां-जहां उनके माल अर्थात~ कीटाणुओं को अधिक मात्रा में बेचा जा सकता था।
‘‘यह देखो ईल्ली, मिठाई की दुकाने’’
‘‘हां मैं देख रही हूं नानी। मुझे मीठा बहत पसंद है।’’
ईल्ली की भोली शक्ल और मासूम जवाब सुन नानी मुस्कुरायी, ‘‘यहां कीटाणु खपत की काफी संभावना है। यह देखो ईल्ली रेलवे प्लेटफार्म, बस स्टेण्ड और इनसे लगी दुकाने शहर की अच्छी जगह है जहां भीड़ भाड़ रहती है.....’’
‘‘यह कहां आ गये हम?’’
‘‘ईल्ली हम अस्पताल आये हैं।’’
‘‘बाप रे! अस्पताल, चलो भागो नानी।’’
‘‘नहीं-नहीं डरो मत ईल्ली। कहने को यह अस्पताल है पर देख नही रही हो इसके चारों ओर बिखरे मलबे का ढ़ेर, बदबूदार शैचालय, यहां भी कीटाणु पहुंचाने की काफी गुंजाईश है। हां, कभी-कभी खतरा भी रहता है परन्तु जोखिम उठाना अपने धंधे का गुण है।’’
‘‘सो तो है नानी’’ ईल्ली बोली और वे आगे उड़ चली।
‘‘यह कौन सी जगह है नानी?’’
‘‘यह एक विद्यालय है। इसमें बच्चे पढ़ते है। वैसे यहां माल, मेरा मतलब कीटाणुओं की खपत की उम्मीद कम हैं फिर भी मैंने अपने कई गुप्तचर यहां छोड़ रखे है जब भी मौका मिला तो हम हाथ से नहीं जाने देंगी।’’
‘‘वाह! बन्दोबस्त तो बहुत अच्छा कर रखा है नानी तुमने परन्तु यहां इतनी सफाई क्यों है?’’
‘‘क्योंकि यहां के बच्चे श्रमदान करते है। स्कूल साफ सुथरा रखते है और रहते भी साफ सुथरे हैं।’’
‘‘फिर तो यहां कीटाणु पहुंचाने का काम बहुत मुश्किल है।’’
कुछ देर नानी और इल्ली उड़ती रही फिर एक जगह पहुंची।
‘‘यहां कहां ले आयी नानी!’’
‘‘ईल्ली यह सौरपुर शहर के किनारे लगी कच्ची बस्ती है, अरे यहीं तो वह खास जगह है।’’
‘‘खास जगह!’’
‘‘हां तुम खुद देखोगी तो समझ जाओगी। देखो बारिश के कारण ही नहीं बल्कि नालियों के अभाव में घरों का गंदा पानी सब जगह बिखरा पड़ा है। पसंद आया तुम्हें यह कीचड़?’’
‘‘पर नानी यहां के लोग!’’
‘‘तुम चिन्ता मत करो। यहां के लोगों को मजदूरी से ही फुर्सत नहीं’’
‘‘फिर भी नानी साफ सुथरे तो रहते होंगे।’’
ईल्ली की बात सुनकर नानी हंसी। ‘‘नहीं, ये कई दिनों तक नहाते नहीं। देख नहीं रही हो इसके खुले फोड़े फुंसी हमें खुला निमंत्रण दे रहे है। इच्छा हो रही हो तो जरा बैठकर देख लो।’’
कुछ देर दौनों वहां भिनभिनाती रही। थोड़ी देर बाद ईल्ली बोली, नानी मेरा पेट भर गया है, चलो अब आगे चलते हैं।’’
‘‘हां चलो।’’
और दोनो उड़ चली।
‘‘अब हम कहां आ पहुंचे नानी?’’
‘‘कहने को तो यह शहर पर्यटन स्थल है बिटिया। दूर-दूर से सैलानी यहां घूमने आते है। यहां के लौगो को भी घूमने का बहुत शौक है। बाहर का खाना भी बहुत पसंद करते है।
रविवार को तो यहां मेला लगा रहता है। इतनी भीड़ पड़ती है कि पूछो मत, सच ईल्ली! सजे धजे लोग पर बैठने का आनंद ही कुछ और है। और वहीं समय रहता है खास स दिन हमारे कार्य व्यापार का’’ हा! हा! हा! नानी रहस्यमयी हंसी हंसने लगी। फिर बोली-
‘‘इतना भीड़ भड़का। किसे फुर्सत जो ध्यान दे। सभी को जल्दी। उस दिन ठेले वाले के हाथ जल्दी जल्दी चलते है। मुझे तो लगता है जैसे हाथ नहीं मशीन हो। बस फटाफट फटाफट। सारी खाने की वस्तुऐं खुली रहती है। बस तभी हमें चुपके से अपना काम करना होता है। इतने कीटाणु बिक जाते है ईल्ली कि धन्धा करने का मजा आ जाता है।’’
‘‘मेरा अनुमान है कि कच्ची बस्ती से अधिक माल यहां बिकेगा। टाईफाईड के कीटाणु तो यहां हाथों हाथ बिक जायेंगे।’’
‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं बिटिया। आखिर तुम हो बड़ी समझदार मेरी औलाद जो ठहरी। चलों, वहां चलते है।’’ दोनों आगे बढ़ी।
‘‘ये वह जगह है ईल्ली जहां सब झूठन का कचरा फेंका जाता है।’’
‘‘बाप रे बाप ये तो पूरा पहाड़ बन गया है।’’
और हां, इसकी बदबू में हमारे कीटाणु बड़े आसानी से खुश होकर रहेंगे। तपेदिक के कीटाणुओं को तो मजा आ जायेगा। तुम तो अपने सारे ट्रक खाली कर यहीं गोदाम बना लेना क्योंकि महीनों यह कचरा नहीं उठने वाला।