शनिवार, 5 दिसंबर 2009

अण्डों की चोरी

गतांक से आगे -
ईल्ली के कीटाणुओं ने अपनी आबादी कई गुना बढ़ा ली थी। हर जगह उनकी कोलॉनियां बस चुकी थी। अपना फलता फूलता व्यापार देख नानी और ईल्ली बहुत खुश और संतुष्ट थी।
काम की अधिकता से नन्ही ईल्ली थक जाती थी। एक दिन जब वह थकी हुई आराम कुर्सी पर बैठी विश्राम कर रही थी तो उसे नानी ने याद दिलाया, ‘‘मेरे अण्डों का क्या हुआ ईल्ली’’ जाकर जरा देख तो आओ अब तक तो अण्डों से वयस्क मक्खियां बन चुकी होंगी। हमें भी अपने काम में मददगारों की आवश्यकता है।’’
‘‘हां नानी, ठीक याद दिलाया। अभी जाती हूं’’ कहती हुई ईल्ली ने गौशाला की ओर उड़ान भरी।
गौशाला में ईल्ली को एक भी मक्खी नजर नहीं आयी। उसे आश्चर्य हुआ। कि नानी के सौ-डेढ़ सौ अण्डों में से क्या एक भी मक्खी नहीं बन पायी। उसने अडौस-पड़ौस में पूछताछ शुरू करी साथी कीट पंतगों से पूछा तभी एक चींटे ने ईल्ली को बताया कि उसने कुछ दिन पूर्व दीमकों के तुंड सैनिको को देखा था जो बोरों में भर कर अण्डे ले जा रहे थे। हो सकता है वो अण्डे तुम्हारे ही हो। अजीब किस्म के जीव हो तुम अण्डे देने के बाद तुमने उन्हें संभाला तक नहीं चींटे ने बुरा सा मुंह बनाया और आगे बढ़ गया। नन्ही ईल्ली परेशान। उड़ती-दौड़ती चींटे के पास पहुंची-
‘‘चींटेराम, चींटेराम उन तुंड सैनिको का कुछ पता ठिकाना तो बता दो। हाय! कहां ले गये वो हमारे अण्डे।
‘‘तुम जैसी लापरवाह प्रजाति का यही हाल होता है।’’
‘‘नहीं-नहीं ऐसा मत कहो चींटेराम, कृपया मुझे दीमकों का पता बता दो। मैं उन्हें ढूंढ लूंगी।’’
‘‘वह दूर उस पेड़ पर उठे हुए टीले को देख रही हो न।’’ चींटे ने केवल इतना ही इशारा किया और आगे बढ़ गया। चींटा तो स्वभाव से ही मनमौजी था। किसी से अधिक बातचीत करना उसे पसन्द नहीं था।
नन्ही ईल्ली पेड़ के इर्द गिर्द भिनभिनाने लगी। ‘बाबा रे! यहां से वापस अण्डे लेना बहुत मुश्किल है। यह तो दीमकों का किला है। पूरा का पूरा भूमिगत, जमीन के नीचे गहराई तक फैला हुआ। जिसकी प्रत्येक सुरंग के द्वार पर रखवाली करते हुए बड़े सिर और बड़े शरीर वाले चौकन्ने पहरेदार। अब क्या किया जाय।’ वह सोचने लगी।
काफी देर सोचने के बाद भी उसे कोई उपाय नहीं सूझा। निराश हो वह लौट पड़ी। मन की निराशा के कारण उसे थकान महसूस होने लगी वह सुस्ताने के लिए पेड़ के नीचे छाया में बैठ गयी।
परेशान ईल्ली गुनगुनाने लगी।
ओ प्रकृति की रानी
सुन ले मेरी कहानी
मैं हूं एक नन्ही मुन्नी
राह बहुत मुश्किल है
काम कठिन है
हिम्मत कम है
अब तू ही बता
कैसे खुश होगी मेरी नानी
तभी उसके स्वर में स्वर मिलाता उसे
बांसुरी का स्वर सुनायी दिया वह चौंक पड़ी, ‘‘कितना अदभुत स्वर है। कौन है यह बांसुरी वादक’’ ईल्ली ने देखा ऊपर पेड़ के पत्ते पर बैठा वही चींटराम बांसुरी की मधुर तान छेड़े हुए है।
ईल्ली की आंखे छलछला आयी। उसका गीत गाना बंद हो चुका था। उसे चुप देख चींटेराम ने भी बांसुरी बजानी बंद कर दी।
‘‘अण्डे मिले नन्ही मक्खी।’’
किन्तु ईल्ली मौन थी उसकी सिसकी नीरव वातावरण में गूंज उठी। उसकी पीली घेरदार पोशाक आंसुओं से भीग चुकी थी। उसका यह हाल देख चींटाराम को दया आ गई। वह पेड़ के पत्ते से नीचे उतर आया।
‘‘मैं जानता हूं तुम दीमक के किले तक नहीं पहुंच सकती आओ मेरे पीछे-पीछे आओ।’’ कहता हुआ चींटा बांसुरी बजाता आगे चल पड़ा। ईल्ली उसके पीछे थी।
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दीमक राजा और कैदी ईल्ली