शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

एक दुर्घटना



गतांक से
आगे -

ईल्ली और नानी बगीचे की ओर जा रही थी। रास्ते में ईल्ली की ट्रक खराब हो गई। नानी आगे निकल चुकी थी इसलिए ईल्ली अकेली रह गई। रास्ता सुनसान था। ईल्ली ने ट्रक को ठीक करने की काफी कोशिश की किन्तु ट्रक चालू नहीं हुआ। अंधेरा छाने लगा था। ईल्ली इधर उधर जगह तलाशने लगी। चिन्ता में डूबी ईल्ली चक्कर काट रही थी कि एक वाहन से टकरा गई और बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी।
इत्तफाक से खिता टिड्डे ने ईल्ली को टकराकर, गिरते हुए देख लिया था। वह बेहोश ईल्ली को अपने तम्बू में ले आया।
टिड्डी दल के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने ईल्ली का इलाज शुरू कर दिया। उसके पंखों पर सबसे अधिक चोटे आयी थी। डॉक्टरों ने पंखों पर मलहम लगाकर पट्टियां बांध दी।
कुछ देर बाद ईल्ली को होश आया वह कराही, ‘‘मैं कहां हूँ?’’
‘‘सेनानायक खिता को सूचित किया जाय। इस मक्खी को होश आ रहा है’’ डॉक्टर टिड्डे ने नर्स टिड्डी को आदेश दिया और पुन: उपचार में जुट गया।
ईल्ली को होश आ चुका था। उसने अपने आपको टिड्डी डॉक्टरो से धिरा पाया जो उसके पांवों पर पट्टियां बांध रहे थे। उसके अंग प्रत्यंग में दर्द हो रहा था। उसने देखा, ‘‘यह तो ऑपरेशन का कक्ष है। वह यहां कैसे आ गई। उसके बदन में दर्द क्यों है? और उसके पंख . . . . . ’’ तभी सामने सेनानायक खिता को आता देख वह चौंकी -खिता तुम?
‘‘हां ईल्ली मैं खिता। तुम्हारा एक्सीडेन्ट हो गया था और तुम बेहोश होकर गिर पड़ी थी। मैं ही तुम्हें यहां उठा लाया। खिता के कहने के साथ ही ईल्ली को सब याद आने लगा कि कैसे बीच रास्ते उसकी ट्रक खराब हो गई और वह नानी से बिछुड़ गई-
ओह! तो नानी मुझे न पाकर परेशान हो रही होगी। ईल्ली को चिन्ता हुई।
‘‘मैंने तुम्हारी नानी के पास सूचना भिजवा दी है। सुबह तक वह आ जायेगी।’’ खिता ने आगे कहां, ‘‘तुम आराम करो ईल्ली। तुम्हारे पंखों पर सबसे अधिक चोट लगी है। किन्तु तुम धीरज रखो। हमारे कुशल चिकित्सक पंखों का ईलाज करने में बहुत होशियार है। तुम जल्दी ही ठीक होकर उड़ान भरने लगोगी . . . . . ’’
‘‘. . . . .और मेरी सुरीली आवाज?’’ ईल्ली को आशंका हुई कि कहीं चोट के कारण उड़ते समय पंखों से भिनभिनाहट की आवाज न हुई तो।?
‘‘यह ठीक होने पर ही मालूम होगा ईल्ली कि तुम्हारे पंख पहले जैसी सुरीली आवाज में कम्पन कर पाते है या नहीं। वैसे हम पूरी कोशिश में जुटे है कि तुम्हारा मधुर स्वर बना रहे।’’ एक टिड्डे डॉक्टर ने ईल्ली को सांत्वना देते हुए कहा।
‘‘ओह! धन्यवाद डॉक्टर।’’ ईल्ली ने डॉक्टर से कहा फिर वह खिता से कहने लगी। ‘‘मैं तुम्हारी भी आभारी हूँ खिता। सचमुच तुम एक दयालु और नेक टिड्डे हो।’’
टिड्डे डॉक्टरों और नर्स टिड्डियों के सामने एक सुन्दर मक्खी से अपनी प्रशंसा सुन खित टिड्डा फूला नहीं समाया। खुश हो वह गीत गुनगुनाने लगा।

कल होगी एक सुन्दर सुबह
ताजी बहेगी हवाएं
उड़न झूलों पर हवा बैठकर आयेगी
एक सलोनी मक्खी को
संग अपने उड़ा ले जायेगी
उसकी पोशाक का
लाल पीला रंग
दूर आसमान में
पतंग बन
लहर लहर लहरायेगा।
कल होगी एक सुन्दर सुबह इन्द्रधनुष पुल बनायेगा
सतरंगे रंग आसमान में छितरायेगा।
एक सलोनी मक्खी को
संग अपने उठा ले जायेगा
इन्द्रधनुष पर बैठी
ईल्ली रानी
को देख हर कोई ललचायेगा
कल होगी एक सुन्दर सुबह
मधुरम, सुनहरी किरणे
अपने रथ में बिठायेगी
दूर गगन में
हीरे जैसी ईल्ली चमचमायेगी।
कल होगी एक सुन्दर सुबह
ईल्ली रानी पंख फैला उड़ जायेगी।
खिता के मधुर गीत से ईल्ली का दर्द कम होने लगा था। खिता ने मन भरकर गीत गाया। वह इससे बढ़कर भला ईल्ली की और क्या मदद कर सकता था। दर्द बांट ही तो सकता था। हुआ भी यही ईल्ली अपने आपको काफी स्वस्थ महसूस कर रही थी।
‘‘तुम्हें भूख लगी होगी ईल्ली परन्तु हमारे यहां तो सिर्फ हरे पत्ते हीं है खाने के लिए. . .’’ खिता बोला।
‘‘नहीं खिता मैं पत्तों का पर्णहरित नहीं खाती। क्या तुम नहीं जानते कि हम मक्खियों का भोजन अलग तरह का होता है और लेती भी अलग ढंग से है।’’
‘‘मुझे मालूम है ईल्ली तुम केवल तरल रूप में भोजन को चूस सकती हो। परन्तु तुम्हारे लिए अंधेरे में भोजन लाना बहुत मुश्किल है।’’
‘‘ओह खिता! फिर तो मुझे भूख के मारे नींद नहीं आयेगी।’’ ईल्ली की बात सुन खिता को अफसोस हुआ। परन्तु किया क्या जा सकता था। अब जैसे तैसे रात तो गुजारनी ही थी। खिता रात गुजारने के लिए ईल्ली को अपनी यात्राओं के रोचक वर्णन सुनाने लगा।
कहानी खिता की
ईल्ली तुम्हें मालूम है हम अफ्रीका के रहने वाले है। भोजन की खोज में हमारे विशाल दल दूर-दर तक निकल जाते हैं।
‘‘तुम्हारें दल में कितनी टिड्डियां है खिता?’’ ईल्ली ने पूछा।
‘‘हमारी गिनती का हिसाब अलग तरह से होता है ईल्ली। एक वर्ग किलोमीटर में करीबन पांच करोड़ टिड्डियां होती है। हमारे दल के विस्तार का अब तुम ही अनुमान लगा लो। हमारा दल एक सौ पचास वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दिन में जब हम एक साथ उड़ती है तो सूरज भी छिप जाता है। एक बार लाल सागर पार करते समय हमारा दल पांच हजार वर्ग किलोमीटर तक फैल गया था।
इसी बात से तुम हमारे द्वारा हरी वनस्पति खाने की ताकत का पता लगा सकती हो। हम जहां भी आक्रमण करते है वहां की खड़ी की खड़ी फसल समूल नष्ट हो जाती है। एक पत्ता तक नहीं बचता। अकाल की स्थिति बन जाती है।
ओह! तुम्हारा टिड्डी दल तो बहुत ताकतवर है खिता। इस हिसाब से तुम प्रतिदिन कितनी ताजी वनस्पति खा जाते हो?
हम लोग करीबन 100 टन वनस्पति का भक्षण एक दिन में कर डालते हैं।
आश्चर्यजनक खिता आश्चर्यजनक। तुम लोग बहुत खाते हो।
हाँ ईल्ली हमें परिश्रम भी तो बहुत करना पड़ता है। हम बिना रूके लगातार पंद्रह से सत्रह घंटे तक उड़ सकते है। एक हजार किलोमीटर से लेकर पन्द्रह हजार किलोमीटर तक की दूरी तय करना हमारे लिए दुष्कर कार्यं नहीं है। विस्मय से गिरी ईल्ली को खिता आगे बताने लगा-
एक बार की बात सुनाई ईल्ली हमारे दल ने अफ्रीका के तट से अटलांटिक महासागर के लिए उड़ान भी। तब मैं सेनानायक नहीं था। नया-नया ही उड़ना सीखा था धीरे उड़ने के कारण मैं और मेरे जैसे कुछ साथी हमारे दल से पीछे छूट गये और रास्ता भटक गये।
‘‘तब?’’ ईल्ली ने उत्सुकता से पूछा।
तब क्या करते। मैंने उस समय सबका नेतृत्व किया। कुछ दूर उड़ने के बाद हमें एक जलयान नजर आया। वहां अपने साथियों सहित उतर कर विश्राम किया।
उस जलयान के रोचक संस्मरण तुम सुनोगी तो दंग रह जायेगी।
‘‘प्लीज खिता सुनाओं न! मुझे बहादुरी से भरे किस्से बहुत पसन्द हैं। मैं बहादुरों का न केवल आदर करती हूँ बल्कि उन्हें प्यार भी करती हूँ।
हां तो ईल्ली सुनो उस विराट जलयान में खाने के नाम पर हरी वनस्पति का एक पत्ता भी नहीं था। ऐसे में हमारे साथ थी एक मादा टिड्डी। उसे अण्डे देने थे। इसके लिए हमें वहां एक-डेढ़ महीना बिना भोजन के ठहरना पड़ा।
शायद तुम्हें मालूम नहीं हमारी जाति की मादा टिड्डी एक बार में अस्सी से लेकर 150 तक अंडे देती है। जिनसे लगभग पन्द्रह दिन बाद बच्चे निकल आते है जिन्हें हम फुदक कहते हैं।
फुदक! फुदक क्यों खिता?
क्योंकि बच्चे उड़ नहीं सकते। तीन सप्ताह बाद जब वह बड़े हो जाते है तब ही उन्हें उड़ना आता है। इससे पहले वह सिर्फ फुदकते रहते है अत: हम लोग उन्हें प्यार से फुदक ही कहते है।
ईल्ली हंसने लगी।
‘‘बड़ा अच्छा लगता है सुनने में बच्चों का नाम ‘फुदक’ ‘फुदक’ ‘फुदक’ दो तीन बार कहती हुई ईल्ली फिर हंस दी।
ईल्ली को हंसता देख खिता टिड्डा खिलखिला पड़ा। दुर्घटना ग्रस्त ईल्ली का मन बहला कर खिता को खुशी हो रही थी। इस तरह की बातों से कभी आश्चर्य तो कभी हंसते हुए पूरी रात गुजर गई।
सूरज की पहली किरण ने उनके तम्बू को छुआ। सुबह के उजाले को देख ईल्ली के हाथ पांवों में हरकत होने लगी। उनकी अकड़न खुलने लगी थी। दोनों हाथों को ऊपर किए आलस तोड़ती हुई ईल्ली खिता से बोली-
तुममें अच्छे मित्र के सभी गुण है खिता। दर्द और भूख के दौरान तुमने पूरी रात मुझे रोचक संस्मरण सुनाकर आसान कर दी। तुमने मेरी काफी मदद की खिता। तुम्हारा अहसान में कभी नहीं भूलूंगी। मैं अपनी डायरी में तुम्हारे रोचक संस्मरणों को जरूर लिखूंगी।
टिड्डी डॉक्टरों ने ईल्ली ने पंखों पर बंधी पट्टियां खोल दी ईल्ली ने पंख फड़फड़ाये। वह उड़ने के लायक हो चुके थे। बाहर नानी भी उसे लेने आ चुकी थी।
दोनों मक्खियों ने खिता टिड्डे को अलविदा कहा ईल्ली के जाने से खिता दुखी होने लगा इस पर वह बोली, ‘‘जीवन रहा तो फिर कभी मिलेंगे खिता। मित्र से मिलने पर खुशी होती है तो बिछुड़ने पर दुख भी। जिसे हमें झेलना ही होगा। शायद जीवन इसी का नाम है।’’ कहती हुई ईल्ली ने मुस्कुराने की नाकाम कोशिश की।
एक छोटी मक्खी की इतनी बड़ी बात सुन खिता ने भरे नेत्रो से ईल्ली को विदा दी।
घर पहुंच कर ईल्ली नानी के साथ अपने व्यापार में व्यस्त हो गई। सुबह जल्दी ही घर से निकलती थी और अंधेरा होने से पहले घरों को लौटती थी।

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शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

खिता से एक मुलाकात


गतांक से आगे -
इतने में नौकरानी मक्खी ने आकर सूचना दी कि, ‘‘आपसे मिलने एक टिड्डा आया है। वह आपसे कुछ खुफिया बात करना चाहता है।’’ इस पर रानी मक्खी ने उसे अन्दर भेज देने का आदेश दिया। नौकरानी मक्खी ने टिड्डे को अन्दर भेज दिया। सिर झुकाकर टिड्डा बोला-
‘‘नमस्ते रानी मक्खी। मैं अफ्रीका का प्रवासी यूथी टिड्डे दल का नायक ‘खिता’ हूं। हम लोग फसलों पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे है। चूंकि यह आपका क्षेत्र है इसलिए आपको सूचना देना आवश्यक समझा गया।’’
मान्य खिता, तुम फसलों पर आक्रमण क्यों करना चाहते हो? जानते नहीं आज के वैज्ञानिक युग में तुम्हें मार भगाने के कई तरीके ढूंढ लिए गये है। वे लोग तुम्हें मारने के लिए वायुयान से जहरीले कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते है। जिससे न केवल तुम्हें बल्कि हमें भी खतरा रहेगा।’’ नानी मक्खी कुछ रूककर आगे बोली बेहतर यहीं है कि तुम चले जाओ। वर्ना तुम्हारे साथ हम भी मारी जायेंगी। क्योंकि तुम्हारी जितनी तेज गति से हम नहीं भाग सकती।
यह सुन खिता बोला, ‘‘रानी मक्खी हमारी विवशता को समझो। इस बार वर्षा अच्छी होने से फसलें अच्छी हुई है। हरी-हरी पत्तियों का पर्णहरित हमें बहुत पसन्द है। हमारा दल कल ही खेतों की ओर कूच कर जायेगा। और संभावना है कि दो तीन दिन में धावा बोल देगें। तुम लोग घरेलू मक्खियां हो बस्ती की ओर भाग जाना, खेतों की ओर मत जाना।’’
‘‘तुम्हारे इस आक्रमण से मेरा तो सारा व्यापार ही चौपट हो जायेगा। मैं कैसे अपने कीटाणुओं को जहरीले कीटनाशकों से बचा पाऊंगी। ईल्ली बेटी तुम ही समझाओ इसे कुछ।’’ रानी मक्खी ने ईल्ली की ओर देखकर कहा। इस पर ईल्ली ने खिता से कहा-
‘‘खिता क्या तुम 10-15 दिन नहीं ठहर सकते। प्लीज मेरे खातिर खिता वर्ना हमारे अण्डे भी बेकार हो जायेगे और हमें कई ट्रक कीटाणुओं का नुकसान होगा सो अलग।’’ ईल्ली ने खिता से इतने मोहक ढंग से आग्रह किया कि खिता इनकार नहीं कर सका।
‘‘सुन्दरी ईल्ली, तुम सुन्दर ही नहीं विनम्र भी हो। विनम्र स्वभाव वाला दूसरों का मन जीत सकता है। तुम्हारी बात मुझे स्वीकार है।’’ इतना कहने के बाद खिता उड़ने को हुआ किन्तु ईल्ली ने उसे शर्बत पिलाना चाहा तो नानी ने टोक दिया।’’ भला टिड्डे कहां जानते है मीठा शर्बत पीना वो तो बस चबर-चबर हरी पत्तियां चबाना जानते है। जानवरों की तरह।’’ कहकर हो! हो!! कर नानी हंस पड़ी ईल्ली को नानी का बेसमय हंसना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
खिता के बात मान लेने से यूथी टिड्डी दल के कारण आया संकट एक बार टल चुका था। ईल्ली और नानी फिर भविष्य की योजनाओं में व्यस्त हो गई। आज उन्हें कई ट्रक कीटाणुओं के कच्ची बस्ती में खाली करने थे। ट्रक के काफिले के साथ वह अपने माल को ले कच्ची बस्ती की ओर निकल पड़ी।
वहां उन्होंने पेचिश, तपेदिक और कुष्ठ रोगों के कीटाणुओं की खूब बिक्री की मुंहमांगी कीमत पर उन्होंने टाईफाईड के कीटाणु बेचे। उनके पास अभी काफी माल था किन्तु शाम होने से पहले उन्हें अन्य जगह भी कीटाणुओं को पहुंचाना था। अत: सभी कीटाणुओं को कोलोनी बसा लेने का आदेश दे वह ट्रको का काफिला लेकर आगे चल दी।
अच्छी जगह पाकर कीटाणु भी बहुत खुश थे। काफी समय से अच्छे वातावरण और भोजन के अभाव में खोल में बंद जीवन काट रहे थे। अब वह फटाफट अपनी संख्या बढ़ाकर आबादी बढ़ा लेंगे। विभिन्न तरह की दवाओं के आने से उनके जीवन को कई खतरे थे। अक्सर उनके बीच आयोजित गोष्ठियों में इसी विषय की चर्चा रहती - उन्हें चिन्ता थी कि यदि यही हाल रहा तो एक दिन वे समूल नष्ट हो जायेगें।
ऐसे में मक्खियां उन्हें हमेशा दिलासा देती। वे सब मक्खियों के आभारी थे वे न होती तो भला वे एक जगह से दूसरी जगह कैसे पहुंच पाते।

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