‘‘सुबह सवा छः बजे की ट्रेन है।’’ अनन्या के पिता ने कहा, ‘‘ट्रेन उदयपुर से ही उठती है इसीलिए निर्धारित समय पर रवाना होगी।’’
‘‘ हमें छः बजे रेलवे प्लेटफार्म पहुंचने का निर्देश मिला है।’’
‘‘हां, इसके लिए चार बजे उठना होगा तुम्हें। घड़ी में अलार्म भर कर सोना होगा।’’
‘‘मैं उठूंगी तब इसे उठा दूंगी। इसके साथ ले जाने का टिफिन का खाना बनाना ही है। मां की बात पूरी होते दादी ने घर में प्रवेश किया। उन्होंने ने बात को सुन लिया सो पूछने लगी, ‘‘कोई कहीं जा रहा है क्या?’’
‘‘हां मां, अनन्या स्कूल टूयर में जा रही है।’’
‘‘स्कूल टूयर में? कहां ले जा रहे है स्कूल वाले? कितनी लड़किया है? कौन साथ जा रहा है.....?’’ दादी ने एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
‘‘स्कूली बच्चे कारगिल के शहीद स्मारक जा रहे है। मां चिंता जैसी कोई बात नहीं है। मैं खुद स्कूल जाकर सब पता कर आया हूं। स्कूल वालों की सब जिम्मेदारी रहती है। कुल चार स्कूलों के बच्चे-टीचर जा रहे है। कोई हमारी अनन्या अकेली थोड़ी है।’’ पिता ने दादी को आश्वस्त करना चाहा। ‘‘ये बच्चे 15 अगस्त का दिन अर्थात हमारा स्वाधीनता दिवस कारगिल में तैनात जवानों के साथ मनायेंगे। शहर से कुल 12 जाने वाले बच्चों में हमारी अनन्या ट्रूप लीडर के रूप में होगी। मां हमारे लिए यह गर्व की बात होगी।’’ वे एक ही सांस में सब कह गये।
‘‘कैसी बात करता है पप्पू? तेरा दिमाग तो ठीक है? बड़ी होती लड़की को इस तरह अेकेले...इत्ती दूर...’’
‘‘अकेल कहां दादी? स्कूल के अध्यापक-अध्यापिकाएं साथ रहेंगी।’’ बीच में ही बात काटकर लपक ली अनन्या ने।
‘‘कश्मीर में कितना आतंक है आतंकियों का? मुओ ने जीना मुहाल कर रखा है। कुछ मालूम है तुझे? अखबार पढ़े है तूने?’’
‘‘ये तुझसे किसने कह दिया मां? कभी कभार घटी घटनाओं के आधार से अनुमान लगा कर तुमने कुछ ज्यादा ही खौफ बिठा लिया है मन में। ऐसा कुछ नहीं है वहां। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक कश्मीर घूमने जा रहे है। सीमा क्षेत्र होने से कुछ खतरे तो हमेशा ही बने रहते है। हमारी भारतीय सीमा की फौजे बड़ी चैकस है। हमंें अपने बच्चों को कमजोर नहीं करना चाहिए। इससे नई पीढ़ी में देशप्रेम व देश रक्षा की भावना विकसित होगी?’’ पिता की बात पर दादी कुछ बोल नहीं सकी। तो उन्होंने फिर कहना प्रारंभ किया-
‘‘जब वह खुद देखेंगे कि किस तरह से सेना हमारी सीमाओं सुरक्षा करती है। कितनी कठीन परिस्थिति में वे जीवन जीकर हम सब देशवासियों का जीवन सुगम बना देते है। बताओं मां? जीजाबाई, रानी कर्मावती की कहानियां तुम्हीं मुझे बचपन में सुनाया करती थी। क्या आज देश को ऐसी वीर स्त्रियों की आवश्यकता नहीं है?’’ वे कुछ क्षण रूके और दादी के चेहरे पर आये उतार-चढ़ाव को पढ़ने लगे।
‘‘सो तो ठीक कहता है पप्पू पर अभी इसकी उम्र ही क्या है?’’
‘‘चैदह-पन्द्रह बरस। मां झांसी की रानी ने भी तो इसी उम्र में अंग्रेजांे से लोहा लिया था। क्या वह स्त्री नहीं थी?’’
‘‘वो जमाना अलग था पप्पू, अब तो घोर कलियुग आ गया है।’’
‘‘नहीं पुराना-नया जमाना कभी अलग नहीं रहा। तुम ही तो मुझे सीख देती रही हो मां। बाऊजी की कितनी इच्छा थी मुझे सेना में भेजने की पर मैं नहीं जा सका। कारण तुम जानती हो। होम गार्ड बनकर सन्तुष्ट होना पड़ा। अब उनकी पोती सेना के जवानों से मिलेगी हमारे लिए यहीं फख्र क्या कम है?’’
दादी बिल्कुल निरूत्तर हो चुकी थी। पापा ने भी राहत की सांस खींची। मां पानी का गिलास भर लायी थी जिसे दादी ने ही सांस में पीकर खतम कर दिया। नीचे मूढ़े पर बैठते हुए उन्होंने अनन्या को संबोधित किया- ‘‘इधर आ मेरी शेरनी...’’ अनन्या दादी के पास पहुंची। यहां मेरे पास बैठ।’’ यह सुनते ही मम्मी पापा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
दादी अनन्या को समझाने लगी- एक लड़की को क्या क्या ध्यान रखना होता है खासतौर से जब वह घर से बाहर परायों के बीच होती है। किस बात से सर्तक और चैकन्ना रहना चाहिए। जरा कुछ भी खटका लगे तो तुरंत अपनी अध्यापिका को कहना चाहिये। सहपाठिनों का साथ नहीं छोड़ना है। जहां भी जाना हो मेडम से पूछकर जाना आदि बातों के बीच दादी अपने जमाने के किस्से सुनाती हुई उसे हंसाती रही और खुद भी साड़ी का पल्लू मुंह के आगे लगा हंसती रही।
साकेत भी लौट आया। वह आकर दादी के पास बैठ गया। जब उसे मालूम हुआ कि उसकी बहन कारगिल की ट्रूप पर जा रही है तो बहुत खुश हुआ। आशा के विपरीत अनन्या से लिपटकर कहने लगा- दीदी तुम्हारे बिना इतने दिन अकेला कैसे रहूंगा?’’
‘‘अकेला कहां? घर पर सब तो है।’’
‘‘कौन मुझे होमवर्क करने में मदद करेगा? इतने दिन में तो मैं गणित में पिछड़ ही जाऊंगा।’’
‘‘मैं ट्रूप से आकर सब करवा दूंगी।’’ इसके बाद दोनों भाई बहन में बाते होती रही। साकेत ने अपना नया पेन निकालकर दीदी को टूयर पर ले जाने के लिए दिया। उसने अपनी और भी चीजे दीदी को देनी चाही। मम्मी को आश्चर्य हा रहा थ हमेशा बहन से लड़ झगड़ की चीजे लेने वाला सकेत आज एकाएक इतना कैसे बदल गया? भाई बहन का निश्छल प्रेम देख मां का दिल भर आया।
‘‘तुम लो अब सो जाओ। सुबह जल्दी उठना है।’’ पापा के कहने पर सब सोने चले गये। साकेत भी जल्दी उठा देने की बात कहकर सोया था। उधर मां कह रही थी कि परिस्थिति बदलते ही बच्चे अपने आप समझदार हो जाते है।
‘‘तभी तो मैं कहता हूं बच्चों को बाहर निकालना चाहिए।’’
‘‘तुमने तो मम्मीजी को ठीक से मना लिया। मुझे तो खटका लगा हुआ था।’’
‘‘उनकी कमजोर नस जो दबा दी मैंने सुनयना। आज मैं आर्मी में ऊंची रेंक पर होताा अगर मम्मी के बहकावे में न आता। बाऊजी ने तो बहुत चाहा था पर मां मुझे अपने आंचल से दूर न कर सकी। हमेशा अनजाने भय से ग्रस्त ही रही।
‘‘वे मना कर देती तो अनन्या का तो मन ही मर जाता।’’
‘‘अनहोनी की आशंका होनी को टाल देती है। जिस कठीन समय की व्यर्थ चिन्ता करते है। कठीन समय जब आता है तो अपनी बु़िद्ध-विवेक, धैर्य व हौसले से सरलता से पार जा जाते है। यही कह रही है आज की घटना।’’
‘‘हां सही कहा आपने।’’ मां ने पिता के सीने में सिर दुबकाते हुए आंखे मूंद ली। लक्ष्मणसिंह यानि अनन्या के पिता आंखे बंद किए अपने अतीत में गोते लगाते हुए अनन्या के भविष्य के सपने बुनने लगे- ‘वह सेना के जवानो को सेल्यूट दे रही है। तिरंगा झंडा शान से आसमान में लहरा रहा है। तिरंगे के पीछे बर्फ से ढ़की हिमाालय की चोटी ‘टाईगर हिल’ को देख उनका सीना गर्व से फूल रही है। ऊंचे नीले आसमान में तिरती सफेद बादल की इक्की दुक्की टुकड़ी तैरती नजर आ रही है।’
‘‘ हमें छः बजे रेलवे प्लेटफार्म पहुंचने का निर्देश मिला है।’’
‘‘हां, इसके लिए चार बजे उठना होगा तुम्हें। घड़ी में अलार्म भर कर सोना होगा।’’
‘‘मैं उठूंगी तब इसे उठा दूंगी। इसके साथ ले जाने का टिफिन का खाना बनाना ही है। मां की बात पूरी होते दादी ने घर में प्रवेश किया। उन्होंने ने बात को सुन लिया सो पूछने लगी, ‘‘कोई कहीं जा रहा है क्या?’’
‘‘हां मां, अनन्या स्कूल टूयर में जा रही है।’’
‘‘स्कूल टूयर में? कहां ले जा रहे है स्कूल वाले? कितनी लड़किया है? कौन साथ जा रहा है.....?’’ दादी ने एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
‘‘स्कूली बच्चे कारगिल के शहीद स्मारक जा रहे है। मां चिंता जैसी कोई बात नहीं है। मैं खुद स्कूल जाकर सब पता कर आया हूं। स्कूल वालों की सब जिम्मेदारी रहती है। कुल चार स्कूलों के बच्चे-टीचर जा रहे है। कोई हमारी अनन्या अकेली थोड़ी है।’’ पिता ने दादी को आश्वस्त करना चाहा। ‘‘ये बच्चे 15 अगस्त का दिन अर्थात हमारा स्वाधीनता दिवस कारगिल में तैनात जवानों के साथ मनायेंगे। शहर से कुल 12 जाने वाले बच्चों में हमारी अनन्या ट्रूप लीडर के रूप में होगी। मां हमारे लिए यह गर्व की बात होगी।’’ वे एक ही सांस में सब कह गये।
‘‘कैसी बात करता है पप्पू? तेरा दिमाग तो ठीक है? बड़ी होती लड़की को इस तरह अेकेले...इत्ती दूर...’’
‘‘अकेल कहां दादी? स्कूल के अध्यापक-अध्यापिकाएं साथ रहेंगी।’’ बीच में ही बात काटकर लपक ली अनन्या ने।
‘‘कश्मीर में कितना आतंक है आतंकियों का? मुओ ने जीना मुहाल कर रखा है। कुछ मालूम है तुझे? अखबार पढ़े है तूने?’’
‘‘ये तुझसे किसने कह दिया मां? कभी कभार घटी घटनाओं के आधार से अनुमान लगा कर तुमने कुछ ज्यादा ही खौफ बिठा लिया है मन में। ऐसा कुछ नहीं है वहां। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक कश्मीर घूमने जा रहे है। सीमा क्षेत्र होने से कुछ खतरे तो हमेशा ही बने रहते है। हमारी भारतीय सीमा की फौजे बड़ी चैकस है। हमंें अपने बच्चों को कमजोर नहीं करना चाहिए। इससे नई पीढ़ी में देशप्रेम व देश रक्षा की भावना विकसित होगी?’’ पिता की बात पर दादी कुछ बोल नहीं सकी। तो उन्होंने फिर कहना प्रारंभ किया-
‘‘जब वह खुद देखेंगे कि किस तरह से सेना हमारी सीमाओं सुरक्षा करती है। कितनी कठीन परिस्थिति में वे जीवन जीकर हम सब देशवासियों का जीवन सुगम बना देते है। बताओं मां? जीजाबाई, रानी कर्मावती की कहानियां तुम्हीं मुझे बचपन में सुनाया करती थी। क्या आज देश को ऐसी वीर स्त्रियों की आवश्यकता नहीं है?’’ वे कुछ क्षण रूके और दादी के चेहरे पर आये उतार-चढ़ाव को पढ़ने लगे।
‘‘सो तो ठीक कहता है पप्पू पर अभी इसकी उम्र ही क्या है?’’
‘‘चैदह-पन्द्रह बरस। मां झांसी की रानी ने भी तो इसी उम्र में अंग्रेजांे से लोहा लिया था। क्या वह स्त्री नहीं थी?’’
‘‘वो जमाना अलग था पप्पू, अब तो घोर कलियुग आ गया है।’’
‘‘नहीं पुराना-नया जमाना कभी अलग नहीं रहा। तुम ही तो मुझे सीख देती रही हो मां। बाऊजी की कितनी इच्छा थी मुझे सेना में भेजने की पर मैं नहीं जा सका। कारण तुम जानती हो। होम गार्ड बनकर सन्तुष्ट होना पड़ा। अब उनकी पोती सेना के जवानों से मिलेगी हमारे लिए यहीं फख्र क्या कम है?’’
दादी बिल्कुल निरूत्तर हो चुकी थी। पापा ने भी राहत की सांस खींची। मां पानी का गिलास भर लायी थी जिसे दादी ने ही सांस में पीकर खतम कर दिया। नीचे मूढ़े पर बैठते हुए उन्होंने अनन्या को संबोधित किया- ‘‘इधर आ मेरी शेरनी...’’ अनन्या दादी के पास पहुंची। यहां मेरे पास बैठ।’’ यह सुनते ही मम्मी पापा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
दादी अनन्या को समझाने लगी- एक लड़की को क्या क्या ध्यान रखना होता है खासतौर से जब वह घर से बाहर परायों के बीच होती है। किस बात से सर्तक और चैकन्ना रहना चाहिए। जरा कुछ भी खटका लगे तो तुरंत अपनी अध्यापिका को कहना चाहिये। सहपाठिनों का साथ नहीं छोड़ना है। जहां भी जाना हो मेडम से पूछकर जाना आदि बातों के बीच दादी अपने जमाने के किस्से सुनाती हुई उसे हंसाती रही और खुद भी साड़ी का पल्लू मुंह के आगे लगा हंसती रही।
साकेत भी लौट आया। वह आकर दादी के पास बैठ गया। जब उसे मालूम हुआ कि उसकी बहन कारगिल की ट्रूप पर जा रही है तो बहुत खुश हुआ। आशा के विपरीत अनन्या से लिपटकर कहने लगा- दीदी तुम्हारे बिना इतने दिन अकेला कैसे रहूंगा?’’
‘‘अकेला कहां? घर पर सब तो है।’’
‘‘कौन मुझे होमवर्क करने में मदद करेगा? इतने दिन में तो मैं गणित में पिछड़ ही जाऊंगा।’’
‘‘मैं ट्रूप से आकर सब करवा दूंगी।’’ इसके बाद दोनों भाई बहन में बाते होती रही। साकेत ने अपना नया पेन निकालकर दीदी को टूयर पर ले जाने के लिए दिया। उसने अपनी और भी चीजे दीदी को देनी चाही। मम्मी को आश्चर्य हा रहा थ हमेशा बहन से लड़ झगड़ की चीजे लेने वाला सकेत आज एकाएक इतना कैसे बदल गया? भाई बहन का निश्छल प्रेम देख मां का दिल भर आया।
‘‘तुम लो अब सो जाओ। सुबह जल्दी उठना है।’’ पापा के कहने पर सब सोने चले गये। साकेत भी जल्दी उठा देने की बात कहकर सोया था। उधर मां कह रही थी कि परिस्थिति बदलते ही बच्चे अपने आप समझदार हो जाते है।
‘‘तभी तो मैं कहता हूं बच्चों को बाहर निकालना चाहिए।’’
‘‘तुमने तो मम्मीजी को ठीक से मना लिया। मुझे तो खटका लगा हुआ था।’’
‘‘उनकी कमजोर नस जो दबा दी मैंने सुनयना। आज मैं आर्मी में ऊंची रेंक पर होताा अगर मम्मी के बहकावे में न आता। बाऊजी ने तो बहुत चाहा था पर मां मुझे अपने आंचल से दूर न कर सकी। हमेशा अनजाने भय से ग्रस्त ही रही।
‘‘वे मना कर देती तो अनन्या का तो मन ही मर जाता।’’
‘‘अनहोनी की आशंका होनी को टाल देती है। जिस कठीन समय की व्यर्थ चिन्ता करते है। कठीन समय जब आता है तो अपनी बु़िद्ध-विवेक, धैर्य व हौसले से सरलता से पार जा जाते है। यही कह रही है आज की घटना।’’
‘‘हां सही कहा आपने।’’ मां ने पिता के सीने में सिर दुबकाते हुए आंखे मूंद ली। लक्ष्मणसिंह यानि अनन्या के पिता आंखे बंद किए अपने अतीत में गोते लगाते हुए अनन्या के भविष्य के सपने बुनने लगे- ‘वह सेना के जवानो को सेल्यूट दे रही है। तिरंगा झंडा शान से आसमान में लहरा रहा है। तिरंगे के पीछे बर्फ से ढ़की हिमाालय की चोटी ‘टाईगर हिल’ को देख उनका सीना गर्व से फूल रही है। ऊंचे नीले आसमान में तिरती सफेद बादल की इक्की दुक्की टुकड़ी तैरती नजर आ रही है।’