शुक्रवार, 14 मार्च 2014

कारगिल की घाटी : 6

रेल यात्रा की खुशी


कक्षा 9 बी की छात्राएं इस गीत को उतार कर याद कर लें। दो दिन बाद समूह गीत की तैयारी शुरू कराई जानी है। यह आदेश पढ़कर 9 बी की छात्राएं लिखने के लिए धकियाने लगी। कुछ तेज तर्राट लड़किया झुंड में आगे घुस गई। उनमें मिताली भी थी। मिताली ने सूचना पट्ट पर अनन्या का कारगिल जाने वाले ट्रूप में लिखा देखा तो वह भीड़ से बचती पीछे की ओर सरकने लग़ी। 
कुछ देर बाद भीड़ कम छंट गईतो अनन्या आगे बढ़ी। सूचना पट्ट साफ दिखाई दे रहा था। अपना नाम सूचनापट्ट पर देखते ही अनन्या कूद पड़ी। कारगिल टूयर में जाने वालो में जोगेश्वरी, देवयानी और सानिया के नाम भी थे। ये तीनों अनन्या की कक्षा की नहीं थी। जोगेश्वरी 10 ए और सानिया 10 बी की छात्रा थी। देवयानी कौनसी क्लास की है, अभी उसे यह नहीं मालूम। कश्मीर जाने के लिए उसका मन उत्साह से भर गया। कश्मीर भारत का स्वर्ग है अब तक उसने यही पढ़ा-सुना था। वह तो रेलगाड़ी में भी पहली बार ही बेठेगी। कभी कभार उसने बस की यात्रा तो की है पर रेल का सफर भी पहली बार ही करेगी। छुक..छुक..छुक...रेल का शोर उसके कानों में उभरने लगा। लड़किया उसे बधाई देने लगी। इतने में एक लम्बी पतली लडत्रकी उसके सामने यह पूछती हुई आ खड़ी हुई- ‘‘तुम्हीं अनन्या हो?’’
‘हां’ अनन्या ने हां में अपनी गर्दन हिलाई।
‘‘मैं देवयानी हूं...कारगिल ट्रूप में मेरा नाम भी है और तुम्हारा भी....यानि हम साथ जा रहे है।’’
‘‘अजी ये तो अच्छी बात है। तुम कौनसी कक्षा की हो?’’
‘‘मैं आठवी सी की छात्रा हूं।’’
‘‘पहले तो कीज्ञी देखा नहीं तुम्हें स्कूल में? कहां रहती हो?’’
‘‘हां मेरा नया एडमिशन है। अभी एक डेढ़ महीना पहले ही भर्ती हुई है। मैं फतहपुरा सर्किल पर रहती हूं। अपने नानी के साथ। डाॅ. आप्टे का नाम तुमने सुना हो शायद, शहर के बड़े नेत्र निशेषज्ञ है और तुम कहां रहती हो?’’ 
‘‘मैं पुराने शहर में मंडी में रहती हूं। मेरे पिता पुलिस लाईंस में होम गार्ड है और मेरी मां बाल ज्ञान मंदिर में शिक्षिका.... और तुम्हारे माता पिता? तुमने उनके बारे में तो बताया नहीं? क्या तुम जोगेश्वरी व सानिया को जानती हो? उनका नाम भी हमारे इस ग्रुप है।’’
‘‘नहीं नहीं मैं किसी को नहीं जानती। दरअसल इस स्कूल में मैं कुछ महीने पहले ही तो पढ़ने आयी हूं। मेरे माता पिता विदेश में नौकरी करते है। अभी आॅस्ट्रेलिया में है इससे पहले हम सब दुबई में थे।’’ इतने में सड़क पर कार का होर्न बजा। ‘‘अच्छाा मैं चलती हूं... मुझे लेने गाड़ी आ गई है।’’ बाॅय में हाथ हिलाती देवयानी स्कूल के मुख्य  द्वार की ओर बढ़ गई। अनन्या देवयानी की बात सुनकर कुछ सोचने लगी। मिताली ने आकर उसके कंधे पकड़ कर झकझोरा- ‘‘क्या आज घर नहीं चलना? यहां नोटिस बोर्ड पर ही चिपके रहना है क्या...?
‘चलो चलते है’ के अंदाज में अनन्या ने हाथ हिलाया ओर वे स्कूल के मुख्य द्वार की ओर बढ़ गई। वे पैदल ही स्कूल से घर और घर से स्कूल आती जाती थी। स्कूल घर के बीच यही कोई आधा पौन किलोमीटर की दूरी थी जिसे वे लोग गलियों में से शार्टकट के रास्ते 15-20 मिनिट में पूरा कर लेती थी।
कई बार अनन्या ने पापा से साईकिल दिलाने की बात कही पर वे उसे अगली कक्षा में दिला देने की बात कहकर पुचकार लेते। इस कारण वह ज्यादा जिद नहीं कर पाती। पिछले साल साकेत ने साईकिल मांगी तो इस साल उसे मिल गई। मम्मी का कहना है कि साकेत का स्कूल दूर है तुम्हारा तो पास ही है। तुम्हें साईकिल की क्या जरूरत? अनन्या सोचती इसमें जरूरत की क्या बात, उसका बहुत मन करता है साईकिल चलाने का तो मम्मी कहती- खरीद भी लेंगे तो रखेंगे कहां? इस मकान में पहले से ही जगह की तंगी है। वह कहती घर बदल लो। नया ले लो। उसके इस सुझाव पर मां हंस पड़ती और दादी कहती घर खरीदने जितने पैसे भी तो चाहिए। उफ! मैं कुछ नहीं जानती बस मुझे साईकिल चलानी है। वह फर्राटे से उड़ना चाहती है ओर लोगों की तरह।
‘‘किस सोच में डूबी हो अनन्या? तुम तो बहुत किसम्मत वाली निकली। पता है तुम्हारा नाम बोर्ड तक कैसे पहुंचा?’’
‘नहीं’ कुछ नहीं बोलकर उसने गर्दन हिलायी।
- कमलेश मेडम ने दिया है तुम्हारा नाम। सूची में कुल दस नाम थे पर चुनना केवल चार को ही था। बाकी छः नाम कट गये। तुम्हारा रह गया।
- तुम्हें कैसे मालूम?
- हमारी कक्षा की लड़कियां बता रही थी। स्टाॅफ रूम में कमलेश मेडम कुपलानी सर के सामने तुम्हारा पक्ष लेते हुए कह रही थी, ‘अधिक पैसे वाले घर से नहीं है लड़की पर है कुशाग्र और अनुशासित। उसकी ऊंची कदकाठी भी ट्रूप के लायक है। उसे मौका अवश्य दीजियेगा।’
- सच, ऐसा कहा उन्होंने।’ तभी उसे दादी की उसे लेकर कही फब्ती याद हो आई। ‘ऊंची ऊंटनी जैसी हो गई है।’ तब पापा ने गर्व से कहा था, ‘होगी क्यों नहीं मां, अपनी अन्नू अच्छी खिलाड़ी जो है। जो बच्चे खेलते है वो भी एक तरह का व्यायाम ही है। खेलकूद से न केवल हष्ट-पुष्ट रहते बल्कि शरीर भी सुगठित व सुडौल बनता है। फिर तुम अपनी लाडली को रोज मक्खन रोटी जो खिलाती हो।’ पापा की बात पर दादी मुस्कुराती बोली- ‘लड़के लड़की का भेद नहीं करती मैं।’ ‘पर कभी कभी टोंक ही देती हो उसके जोर से हंसने पर.... बोलने पर... उठबैठ पर....’ ‘देख पप्पू तू उसकी गलत हिमायत ना भर। मैं कोई उसकी दुश्मन नहीं हूं। दादी हूं उसकी। बड़े जतन से पालपोस कर बड़ा किया है। आजकल जमाने की हवा बहुत खराब है जो हर समय मेरे को चिन्ता लगी रहती है। इसलिए जरा बरज लेती हूं। रोज अखबारों में किस्से भरे रहते है......’फिर तो दादी और पापा में बहस होने लगी। 
अनन्या को चुपचाप चलते देख मिताली ने पूछा- ‘‘क्या सोच रही हो अनन्या?’’
‘‘सोचती हूं मेरा ऊंटनी होना बेकार नहीं गया। ट्रूप के लिए काम आ गया।’’ और फुस्स करके वह हंस पड़ी। कहने लगी-
‘‘घर पर मां तो अभी आई नहीं होगी और पापा तो वैसे ही देर से आते है। साकेत को कुछ कहने बताने का कोई मतलब नहीं। ऐसे ही बखेड़ा करेगा। चिल्ला चिल्लाकर रोयेगा सो अलग... और दादी को बताना यानि उफ! किसी काम के लिए इन्कार करवाना। दादी तो वैसे ही इतनी डरपोक है कि उसे दूध की डेयरी तक अकेला जाने से मना करती है। कहती है साकेत को ले जा। जैसे वह कोई गुड़ की डली है जो उठा लेगा और मुंह में रख लेगा गप्प।’’
अनन्या घर पहुंची तो देखा मां आ चुकी है और बिस्तर पर सो रही है। उन्होंने पूरे बदन को मोटी चादर से ढ़क रखा है। वह पास गई तो पता चला कि मां का बदन गर्म है। ‘‘मां तुम्हें तो बुखार आ रहा है?’’
 ‘‘हां, हाथ पैर और सिर दर्द कर रहा है।’’ वह सोच में पड़ गई। क्या करें? ‘‘चाय बनाऊं? दादी कहां गई मां?’’ इधर उधर देख उसने पूछा।
‘‘पड़ौस में मृत्यु हो गई है। दादी वहां गई है। मुझे भी जाना है पर तबीयत साथ नहीं दे रही है। पूरा घर बिखर रहा और शाम का खाना बनाना है। तुम दोनांे को अभी भूख लगेगी।’’ उन्होंने उठने की कोशिश करते हुए कहा।
‘‘सोई रहो मां। अब मैं आ गई हूं।’’ अनन्या ने मां को तस्सली दी। ‘‘मेरे पास स्कूटी होती तो तुम्हें अभी अस्पताल लेकर चली जाती। चलो मां ओटो रिक्शा में ले चलती हूं।
‘‘नहीं मैंने गोली ले ली है। अभी ठीक हो जाऊंगी।’’

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