शनिवार, 15 मार्च 2014

कारगिल की घाटी : 7

अनन्या ने अपने कारगिल टूयर में चयन की बात पिता को बतायी। सुनकर वह खुश भी हुए और उसके सिर को प्यार से सहलाया भी परन्तु घर में उन्होंने इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहा। आशा के विपरीत सारे हालात बन रहे थे। मां को मलेरिया हो गया।  वह रूआंसी हो आयी तो पापा ने उसका सिर सहला दिया। ‘‘स्कूल में टृयर के लिए रूपये जमा कराने है।’’ 

‘‘हां ले जाना एक दो दिन में दे दूंगा।’’ उसने पापा के कंधे पर अपना सिर टिका दिया। वे कुछ ना बोले केवल उसकी पीठ थपथपा दी। ‘यानि वो जायेगी।’ खुशी से वह भर उठी। दादी के बाहर जाने आने से अनन्या पर काम का भार बढ़ गया था। वह रसोई मे सब्जी झौंक रही थी कि पापा घर आ गये। ‘पापा स्कूल में ट्रूप के लिए कल ही जमा करानी है।’ वह कुछ कहती इससे पूर्व ही उन्होंने उसे रूपये दे दिये। जिसे उसने दूसरे दि ही जमा करा दिए। टूयर में जाने वाली चारों लड़कियों के रूपये जमा हो गये थे। बदले में उन्हें पूरा यात्रा का कार्यक्रम, समय व स्थान की सारणी, ठहराव की जगह साथ में ले जाने वाली चीजों की सूची आदि सूचना निर्देश पत्रवली दे दिए गए। अनन्या की आंखों उस समय खुशी से भर गई जब उसने पढ़ा कि उनकी कारगिल घाटी का सफर  रेलयात्रा से प्रारंभ होगा। वह कभी रेलगाड़ी में नहीं बैठी थी। यहां तक कि उसने कभी रेलवे प्लेटफार्म तक नहीं देखा। उसके उपने शहर में दो रेलवे प्लेटफार्म है- एक नया और एक पुराना। नये को न्यू सिटी स्टेशन और पुराने को राणा प्रताप रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता है। 10 अगस्त सुबह सवा छः बजे उदयपुर एक्सप्रेस 12991 ट्रेन से उनकी यात्रा प्रारंभ होगी। वे लोग करीबन 11.30 बजे तक अजमेर पहुंचेंगे। वहां से रेल बदलकर जम्मू के लिए वह 2.00 पूजा एक्सप्रेस नामक 12413 नम्बर ट्रेन में बैठेंगे। जो उन्हें दूसरे दिन सुबह 8.00 पर जम्मू में उतार देगी। प्रस्तावित रूपरेखा बताते हुए मेडम ने चारों लड़कियों को सफर के बारे में, 15 अगस्त के कारगिल शहीद स्मारक के बारे में कार्यक्रम संबंधित कई सूचनाओं को बताया। शहर के कुल चार विद्यालय से कुल 15-16 छात्र-छात्राएं सम्मिलित होंगी। प्रत्येक स्कूल से एक शिक्षक रहेगा। हमारे विद्यालय से कृपलानी सर जा रहे है। कृपलानी सर के अलावा दो महिला शिक्षिका भी रहेंगी। यह पूरा आयोजन शहर की ख्यातनाम बच्चो पर काम करने वाली संस्था ‘कल्पतरू’ करवा रही है। इसी कारण बहुत मामूली राशि जाने वाली प्रत्येक छात्रा को देनी तय की गई है।‘जरूरी साथ ले जाने वाले सामान की सूची अनुसार तैयारी करनी है।’ घर आकर अनन्या ने दोनों सूची मां को थमायी। हालत में अभी थोड़ा सुधार था। हालांकि मलेरिया की वजह से काफी कमजोर हो गई थी मां। ‘‘क्या है?’’ कहती हुई मां सूचनाएं एवं विवरण पढ़ने लगी। फिर बोली- ‘‘सबकुछ तो तैयार है। करना क्या है? जमा ले। वो नीला वाला बेग और काला सूटकेस ऊपर की ताक से उतार ले।’’ ‘यानि मां को जाने में कोई आपत्ति नहीं है।’ सोच में पड़ी अनन्या ने पूछ ही लिया- ‘‘ फिर तुम खामोश क्यों थी मां? इतने दिन कुछ बोली क्यों नहीं? मेरे जाने से तुम खुश नहीं हो?’’‘‘पगली है तू। सयानी हो रही है, धीरे धीरे सब समझ जाओगी। हर्ष अतिरेक से भी बनते काम बिगड़ जाते है या प्रसन्नता समय आने पर ही व्यक्त होनी चाहिए। मौन भी लाभ लिए होता है।’’9 अगस्त की शाम जब पापा घर आये तो उनके साथ लाल रंग का पहिए वाला सूटकेस थ जिसे वे स्ट्राॅलर कह रहे थे। पीछ पर लादने वाला नीला एयर बेग भी था। इसके साथ ही खाने के सामान के पैकेट, कुछ कपड़े वगैरह के साथ टार्च के सेल, छोटा टूथपेस्ट, कंघी, जैसी छोटी-छोटी ओर भी वस्तुएं देखकर वह खुशी के मारे उछल पड़ी। आगे बढ़कर वह पापा के कंधे पर झूल गई जिससे उनका संतुलन बिगड़ने लगा- ‘‘अरे..रे..क्या करती है अन्नु?’’ वह अपने पापा से लिपट गई- ‘‘आप बहुत अच्छे है पापा।’’‘‘हां जब सामान लाते है तब। वर्ना डांटते है जब.....बुरे। ऐसा ही है ना...’’ मां मुस्कुराने लगी। उनके हाथ में अनन्या के प्रेस किए हुउ कपड़ो की थड़ी थी। ‘‘लो अब कपड़े भी जमा दो इसके।’’ कहते हुए वे चादर, तौलिए, नेपकिन, रूमाल-मौजे जैसे जमा किए हुए और भी कपड़े ले आयी। उन्होंने सारा सामान पहले से ही निकाल रखा था। बाकी बचा सामान पापा मम्मी की लिस्ट अनुसार ले ही आये थे। ‘‘ये कुछ दवाईयां व फस्र्टएड का सामान का डिब्बा भी रखा है।’’ अनन्या को आश्चर्य हो रहा था। बिमार होते हएु मां ने ये गुपचुप तैयारी कब पूरी कर ली थी। साकेत और दादी दोनों घर से बाहर थे। दादी पड़ौस के मृत्यु वाले घर में गुरूड़ पुराण सुनने गई हुई थी और साकेत सहपाठी के यहो पढ़ने। मां ने सारा लगेज जम जाने के बाद पलंग के नीचे रखवा दिया। अब तक दादी व साकेत दोनों ही उसके जाने की बात से अनभिज्ञ थे।‘‘सुबह सवा छः बजे की ट्रेन है।

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