रविवार, 11 अक्तूबर 2009

ईल्ली और नानी

केशू पांचवीं कक्षा के आगे पढ़ नहीं सका क्योंकि वह अनाथ हो गया था। अकेले, निराश्रित केशू को पुस्तकों की दुकान वाले दयाल बाबू ने अपने यहां रख लिया। उसके चारों ओर विभिन्न विषयों की ढ़ेर सारी पुस्तके थी। वह एक-एककर इन सभी को पढ़ लेना चाहता था। यही सोच दुकान से लौटते समय वह एक पुस्तक घर ले आया जिसका नाम था ‘‘ईल्ली और नानी’’ सबके सो जाने के बाद बरामदे में जल रही मद्धिम रोशनी में वह पुस्तक पढ़ने लगा।
एक थी नन्ही मक्खी, नाम था ईल्ली, उसकी मां कीटाणुओं की व्यापारिन थी। उसके पास कई ट्रक थे जिनमें लादकर वह कीटाणुओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया करती। बाजार में कभी पेचिश के कीटाणु की मांग होती तो कभी हैजा के कीटाणु की, मौसम बदलते ही कीटाणुओं की मांग बदल जाया करती थी।
ऐसे ही एक दिन ईल्लीकी मां कीटाणुओं के ट्रक लादकर व्यापार करने गई। पीछे से ईल्ली को नानी का तार मिला।
‘‘फटाफट चली आओ, यहां बहुत वर्षा हुई है। गढ्ढे पोखर पानी से भरे हुए है। काफी कीटाणु बिकने की संभावना है। डाईरिया के कीटाणु अधिक लाना।’’
‘ओइ! मां तो अभी तक लौटी नहीं, अब उनकी जगह मुझे ही जाना होगा। अच्छे बच्चो की तरह मुझे बड़ों के काम में हाथ बटांना चाहिए।’ यह सोच नन्ही ईल्ली ने ट्रक लादने शुरू किये। तरह-तरह के कीटाणुओं को लेकर वह चल पड़ी सौरपुर शहर की ओर।
रास्ते में कीटाणुओं से भरे ट्रक देखकर दवाई ने हमला कर दिया।
चारों ओर से घेर कर दवाई अपने गोली-केप्सूल दागने लगी। परन्तु कई कीटाणु थे बड़े होशियार उन्होंने अपने बीजों को कड़े खोल के आवरण में सुरक्षित रख छोड़ा था। हमले में काफी कीटाणु मारे गये। ईल्ली स्वंय भी किसी तरह बचती बचाती रास्ते की कठिनाईयों को पार करती हुई नानी के घर पहुंची।
नानी ईल्ली से मिलकर और ईल्ली नानी से मिलकर बहुत खुश हुई, नानी ने ईल्ली को गले लगाया। उन्होंने एक दूसरे के हालचाल पूछे व धूप भी सेंकी और अपने पंख भी झाड़े उनके बीच नये कीटाणु की चर्चा भी चली।
नानी ने ईल्ली से कहा, ‘‘आज से हम कीटाणु पहुंचाने का काम शुरू करेंगी। इससे पहले मैं चाहती हूं कि तुम घूमकर पूरे क्षेत्र का मुआयना कर लो ताकि सोच समझकर कार्य पूरी कुशलता से कर सको। क्योंकि अभी तुम एक बच्ची मक्खी हो। व्यापार की तकनीक से अपरिचित हो अत: साथ रहकर मैं तुमहें इस कला की बारीकियां समझाऊंगी।
कहने को तो यह सौरपुर शहर है यहां की नगरपालिका खूंखार है किन्तु डरने की कोई बात नहीं मैं तुमहारे साथ रहूंगी। ‘‘इतना कहकर नानी ने उड़ान भरी। साथ में ईल्ली ने भी उडान भरी।
उन्होंने उन तमाम जगहों को देखना शुरू किया जहां-जहां उनके माल अर्थात~ कीटाणुओं को अधिक मात्रा में बेचा जा सकता था।
‘‘यह देखो ईल्ली, मिठाई की दुकाने’’
‘‘हां मैं देख रही हूं नानी। मुझे मीठा बहत पसंद है।’’
ईल्ली की भोली शक्ल और मासूम जवाब सुन नानी मुस्कुरायी, ‘‘यहां कीटाणु खपत की काफी संभावना है। यह देखो ईल्ली रेलवे प्लेटफार्म, बस स्टेण्ड और इनसे लगी दुकाने शहर की अच्छी जगह है जहां भीड़ भाड़ रहती है.....’’
‘‘यह कहां आ गये हम?’’
‘‘ईल्ली हम अस्पताल आये हैं।’’
‘‘बाप रे! अस्पताल, चलो भागो नानी।’’
‘‘नहीं-नहीं डरो मत ईल्ली। कहने को यह अस्पताल है पर देख नही रही हो इसके चारों ओर बिखरे मलबे का ढ़ेर, बदबूदार शैचालय, यहां भी कीटाणु पहुंचाने की काफी गुंजाईश है। हां, कभी-कभी खतरा भी रहता है परन्तु जोखिम उठाना अपने धंधे का गुण है।’’
‘‘सो तो है नानी’’ ईल्ली बोली और वे आगे उड़ चली।
‘‘यह कौन सी जगह है नानी?’’
‘‘यह एक विद्यालय है। इसमें बच्चे पढ़ते है। वैसे यहां माल, मेरा मतलब कीटाणुओं की खपत की उम्मीद कम हैं फिर भी मैंने अपने कई गुप्तचर यहां छोड़ रखे है जब भी मौका मिला तो हम हाथ से नहीं जाने देंगी।’’
‘‘वाह! बन्दोबस्त तो बहुत अच्छा कर रखा है नानी तुमने परन्तु यहां इतनी सफाई क्यों है?’’
‘‘क्योंकि यहां के बच्चे श्रमदान करते है। स्कूल साफ सुथरा रखते है और रहते भी साफ सुथरे हैं।’’
‘‘फिर तो यहां कीटाणु पहुंचाने का काम बहुत मुश्किल है।’’
कुछ देर नानी और इल्ली उड़ती रही फिर एक जगह पहुंची।
‘‘यहां कहां ले आयी नानी!’’
‘‘ईल्ली यह सौरपुर शहर के किनारे लगी कच्ची बस्ती है, अरे यहीं तो वह खास जगह है।’’
‘‘खास जगह!’’
‘‘हां तुम खुद देखोगी तो समझ जाओगी। देखो बारिश के कारण ही नहीं बल्कि नालियों के अभाव में घरों का गंदा पानी सब जगह बिखरा पड़ा है। पसंद आया तुम्हें यह कीचड़?’’
‘‘पर नानी यहां के लोग!’’
‘‘तुम चिन्ता मत करो। यहां के लोगों को मजदूरी से ही फुर्सत नहीं’’
‘‘फिर भी नानी साफ सुथरे तो रहते होंगे।’’
ईल्ली की बात सुनकर नानी हंसी। ‘‘नहीं, ये कई दिनों तक नहाते नहीं। देख नहीं रही हो इसके खुले फोड़े फुंसी हमें खुला निमंत्रण दे रहे है। इच्छा हो रही हो तो जरा बैठकर देख लो।’’
कुछ देर दौनों वहां भिनभिनाती रही। थोड़ी देर बाद ईल्ली बोली, नानी मेरा पेट भर गया है, चलो अब आगे चलते हैं।’’
‘‘हां चलो।’’
और दोनो उड़ चली।
‘‘अब हम कहां आ पहुंचे नानी?’’
‘‘कहने को तो यह शहर पर्यटन स्थल है बिटिया। दूर-दूर से सैलानी यहां घूमने आते है। यहां के लौगो को भी घूमने का बहुत शौक है। बाहर का खाना भी बहुत पसंद करते है।
रविवार को तो यहां मेला लगा रहता है। इतनी भीड़ पड़ती है कि पूछो मत, सच ईल्ली! सजे धजे लोग पर बैठने का आनंद ही कुछ और है। और वहीं समय रहता है खास स दिन हमारे कार्य व्यापार का’’ हा! हा! हा! नानी रहस्यमयी हंसी हंसने लगी। फिर बोली-
‘‘इतना भीड़ भड़का। किसे फुर्सत जो ध्यान दे। सभी को जल्दी। उस दिन ठेले वाले के हाथ जल्दी जल्दी चलते है। मुझे तो लगता है जैसे हाथ नहीं मशीन हो। बस फटाफट फटाफट। सारी खाने की वस्तुऐं खुली रहती है। बस तभी हमें चुपके से अपना काम करना होता है। इतने कीटाणु बिक जाते है ईल्ली कि धन्धा करने का मजा आ जाता है।’’
‘‘मेरा अनुमान है कि कच्ची बस्ती से अधिक माल यहां बिकेगा। टाईफाईड के कीटाणु तो यहां हाथों हाथ बिक जायेंगे।’’
‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं बिटिया। आखिर तुम हो बड़ी समझदार मेरी औलाद जो ठहरी। चलों, वहां चलते है।’’ दोनों आगे बढ़ी।
‘‘ये वह जगह है ईल्ली जहां सब झूठन का कचरा फेंका जाता है।’’
‘‘बाप रे बाप ये तो पूरा पहाड़ बन गया है।’’
और हां, इसकी बदबू में हमारे कीटाणु बड़े आसानी से खुश होकर रहेंगे। तपेदिक के कीटाणुओं को तो मजा आ जायेगा। तुम तो अपने सारे ट्रक खाली कर यहीं गोदाम बना लेना क्योंकि महीनों यह कचरा नहीं उठने वाला।

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