गुरुवार, 20 मार्च 2014

कारगिल की घाटी : 8

‘‘सुबह सवा छः बजे की ट्रेन है।’’ अनन्या के पिता ने कहा, ‘‘ट्रेन उदयपुर से ही उठती है इसीलिए निर्धारित समय पर रवाना होगी।’’
‘‘ हमें छः बजे रेलवे प्लेटफार्म पहुंचने का निर्देश मिला है।’’
‘‘हां, इसके लिए चार बजे उठना होगा तुम्हें। घड़ी में अलार्म भर कर सोना होगा।’’
‘‘मैं उठूंगी तब इसे उठा दूंगी। इसके साथ ले जाने का टिफिन का खाना बनाना ही है। मां की बात पूरी होते दादी ने घर में प्रवेश किया। उन्होंने ने बात को सुन लिया सो पूछने लगी, ‘‘कोई कहीं जा रहा है क्या?’’
‘‘हां मां, अनन्या स्कूल टूयर में जा रही है।’’
‘‘स्कूल टूयर में? कहां ले जा रहे है स्कूल वाले? कितनी लड़किया है? कौन साथ जा रहा है.....?’’ दादी ने एक के बाद एक प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
‘‘स्कूली बच्चे कारगिल के शहीद स्मारक जा रहे है। मां चिंता जैसी कोई बात नहीं है। मैं खुद स्कूल जाकर सब पता कर आया हूं। स्कूल वालों की सब जिम्मेदारी रहती है। कुल चार स्कूलों के बच्चे-टीचर जा रहे है। कोई हमारी अनन्या अकेली थोड़ी है।’’ पिता ने दादी को आश्वस्त करना चाहा। ‘‘ये बच्चे 15 अगस्त का दिन अर्थात हमारा स्वाधीनता दिवस कारगिल में तैनात जवानों के साथ मनायेंगे। शहर से कुल 12 जाने  वाले बच्चों में हमारी अनन्या ट्रूप लीडर के रूप में होगी। मां हमारे लिए यह गर्व की बात होगी।’’ वे एक ही सांस में सब कह गये।
‘‘कैसी बात करता है पप्पू? तेरा दिमाग तो ठीक है? बड़ी होती लड़की को इस तरह अेकेले...इत्ती दूर...’’
‘‘अकेल कहां दादी? स्कूल के अध्यापक-अध्यापिकाएं साथ रहेंगी।’’ बीच में ही बात काटकर लपक ली अनन्या ने।
‘‘कश्मीर में कितना आतंक है आतंकियों का? मुओ ने जीना मुहाल कर रखा है। कुछ मालूम है तुझे? अखबार पढ़े है तूने?’’
‘‘ये तुझसे किसने कह दिया मां? कभी कभार घटी घटनाओं के आधार से अनुमान लगा कर तुमने कुछ ज्यादा ही खौफ बिठा लिया है मन में। ऐसा कुछ नहीं है वहां। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक कश्मीर घूमने जा रहे है। सीमा क्षेत्र होने से कुछ खतरे तो हमेशा ही बने रहते है। हमारी भारतीय सीमा की फौजे बड़ी चैकस है। हमंें अपने बच्चों को कमजोर नहीं करना चाहिए। इससे नई पीढ़ी में देशप्रेम व देश रक्षा की भावना विकसित होगी?’’ पिता की बात पर दादी कुछ बोल नहीं सकी। तो उन्होंने फिर कहना प्रारंभ किया-
‘‘जब वह खुद देखेंगे कि किस तरह से सेना हमारी सीमाओं सुरक्षा करती है। कितनी कठीन परिस्थिति में वे जीवन जीकर हम सब देशवासियों का जीवन सुगम बना देते है। बताओं मां? जीजाबाई, रानी कर्मावती की कहानियां तुम्हीं मुझे बचपन में सुनाया करती थी। क्या आज देश को ऐसी वीर स्त्रियों की आवश्यकता नहीं है?’’ वे कुछ क्षण रूके और दादी के चेहरे पर आये उतार-चढ़ाव को पढ़ने लगे।
‘‘सो तो ठीक कहता है पप्पू पर अभी इसकी उम्र ही क्या है?’’
‘‘चैदह-पन्द्रह बरस। मां झांसी की रानी ने भी तो इसी उम्र में अंग्रेजांे से लोहा लिया था। क्या वह स्त्री नहीं थी?’’
‘‘वो जमाना अलग था पप्पू, अब तो घोर कलियुग आ गया है।’’
‘‘नहीं पुराना-नया जमाना कभी अलग नहीं रहा। तुम ही तो मुझे सीख देती रही हो मां। बाऊजी की कितनी इच्छा थी मुझे सेना में भेजने की पर मैं नहीं जा सका। कारण तुम जानती हो। होम गार्ड बनकर सन्तुष्ट होना पड़ा। अब उनकी पोती सेना के जवानों से मिलेगी हमारे लिए यहीं फख्र क्या कम है?’’
दादी बिल्कुल निरूत्तर हो चुकी थी। पापा ने भी राहत की सांस खींची। मां पानी का गिलास भर लायी थी जिसे दादी ने ही सांस में पीकर खतम कर दिया। नीचे मूढ़े पर बैठते हुए उन्होंने अनन्या को संबोधित किया- ‘‘इधर आ मेरी शेरनी...’’ अनन्या दादी के पास पहुंची। यहां मेरे पास बैठ।’’ यह सुनते ही मम्मी पापा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
दादी अनन्या को समझाने लगी- एक लड़की को क्या क्या ध्यान रखना होता है खासतौर से जब वह घर से बाहर परायों के बीच होती है। किस बात से सर्तक और चैकन्ना रहना चाहिए। जरा कुछ भी खटका लगे तो तुरंत अपनी अध्यापिका को कहना चाहिये। सहपाठिनों का साथ नहीं छोड़ना है। जहां भी जाना हो मेडम से पूछकर जाना आदि बातों के बीच दादी अपने जमाने के किस्से सुनाती हुई उसे हंसाती रही और खुद भी साड़ी का पल्लू मुंह के आगे लगा हंसती रही।
साकेत भी लौट आया। वह आकर दादी के पास बैठ गया। जब उसे मालूम हुआ कि उसकी बहन कारगिल की ट्रूप पर जा रही है तो बहुत खुश हुआ। आशा के विपरीत अनन्या से लिपटकर कहने लगा- दीदी तुम्हारे बिना इतने दिन अकेला कैसे रहूंगा?’’
‘‘अकेला कहां? घर पर सब तो है।’’
‘‘कौन मुझे होमवर्क करने में मदद करेगा? इतने दिन में तो मैं गणित में पिछड़ ही जाऊंगा।’’
‘‘मैं ट्रूप से आकर सब करवा दूंगी।’’ इसके बाद दोनों भाई बहन में बाते होती रही। साकेत ने अपना नया पेन निकालकर दीदी को टूयर पर ले जाने के लिए दिया। उसने अपनी और भी चीजे दीदी को देनी चाही। मम्मी को आश्चर्य हा रहा थ हमेशा बहन से लड़ झगड़ की चीजे लेने वाला सकेत आज एकाएक इतना कैसे बदल गया? भाई बहन का निश्छल प्रेम देख मां का दिल भर आया।
‘‘तुम लो अब सो जाओ। सुबह जल्दी उठना है।’’ पापा के कहने पर सब सोने चले गये। साकेत भी जल्दी उठा देने की बात कहकर सोया था। उधर मां कह रही थी कि परिस्थिति बदलते ही बच्चे अपने आप समझदार हो जाते है।
‘‘तभी तो मैं कहता हूं बच्चों को बाहर निकालना चाहिए।’’
‘‘तुमने तो मम्मीजी को ठीक से मना लिया। मुझे तो खटका लगा हुआ था।’’
‘‘उनकी कमजोर नस जो दबा दी मैंने सुनयना। आज मैं आर्मी में ऊंची रेंक पर होताा अगर मम्मी के बहकावे में न आता। बाऊजी ने तो बहुत चाहा था पर मां मुझे अपने आंचल से दूर न कर सकी। हमेशा अनजाने भय से ग्रस्त ही रही। 
‘‘वे मना कर देती तो अनन्या का तो मन ही मर जाता।’’
‘‘अनहोनी की आशंका होनी को टाल देती है। जिस कठीन समय की व्यर्थ चिन्ता करते है। कठीन समय जब आता है तो अपनी बु़िद्ध-विवेक, धैर्य व हौसले से सरलता से पार जा जाते है। यही कह रही है आज की घटना।’’
‘‘हां सही कहा आपने।’’ मां ने पिता के सीने में सिर दुबकाते हुए आंखे मूंद ली। लक्ष्मणसिंह यानि अनन्या के पिता आंखे बंद किए अपने अतीत में गोते लगाते हुए अनन्या के भविष्य के सपने बुनने लगे- ‘वह सेना के जवानो को सेल्यूट दे रही है। तिरंगा झंडा शान से आसमान में लहरा रहा है। तिरंगे के पीछे बर्फ से ढ़की हिमाालय की चोटी ‘टाईगर हिल’ को देख उनका सीना गर्व से फूल रही है। ऊंचे नीले आसमान में तिरती सफेद बादल की इक्की दुक्की टुकड़ी तैरती नजर आ रही है।’

शनिवार, 15 मार्च 2014

कारगिल की घाटी : 7

अनन्या ने अपने कारगिल टूयर में चयन की बात पिता को बतायी। सुनकर वह खुश भी हुए और उसके सिर को प्यार से सहलाया भी परन्तु घर में उन्होंने इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहा। आशा के विपरीत सारे हालात बन रहे थे। मां को मलेरिया हो गया।  वह रूआंसी हो आयी तो पापा ने उसका सिर सहला दिया। ‘‘स्कूल में टृयर के लिए रूपये जमा कराने है।’’ 

‘‘हां ले जाना एक दो दिन में दे दूंगा।’’ उसने पापा के कंधे पर अपना सिर टिका दिया। वे कुछ ना बोले केवल उसकी पीठ थपथपा दी। ‘यानि वो जायेगी।’ खुशी से वह भर उठी। दादी के बाहर जाने आने से अनन्या पर काम का भार बढ़ गया था। वह रसोई मे सब्जी झौंक रही थी कि पापा घर आ गये। ‘पापा स्कूल में ट्रूप के लिए कल ही जमा करानी है।’ वह कुछ कहती इससे पूर्व ही उन्होंने उसे रूपये दे दिये। जिसे उसने दूसरे दि ही जमा करा दिए। टूयर में जाने वाली चारों लड़कियों के रूपये जमा हो गये थे। बदले में उन्हें पूरा यात्रा का कार्यक्रम, समय व स्थान की सारणी, ठहराव की जगह साथ में ले जाने वाली चीजों की सूची आदि सूचना निर्देश पत्रवली दे दिए गए। अनन्या की आंखों उस समय खुशी से भर गई जब उसने पढ़ा कि उनकी कारगिल घाटी का सफर  रेलयात्रा से प्रारंभ होगा। वह कभी रेलगाड़ी में नहीं बैठी थी। यहां तक कि उसने कभी रेलवे प्लेटफार्म तक नहीं देखा। उसके उपने शहर में दो रेलवे प्लेटफार्म है- एक नया और एक पुराना। नये को न्यू सिटी स्टेशन और पुराने को राणा प्रताप रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता है। 10 अगस्त सुबह सवा छः बजे उदयपुर एक्सप्रेस 12991 ट्रेन से उनकी यात्रा प्रारंभ होगी। वे लोग करीबन 11.30 बजे तक अजमेर पहुंचेंगे। वहां से रेल बदलकर जम्मू के लिए वह 2.00 पूजा एक्सप्रेस नामक 12413 नम्बर ट्रेन में बैठेंगे। जो उन्हें दूसरे दिन सुबह 8.00 पर जम्मू में उतार देगी। प्रस्तावित रूपरेखा बताते हुए मेडम ने चारों लड़कियों को सफर के बारे में, 15 अगस्त के कारगिल शहीद स्मारक के बारे में कार्यक्रम संबंधित कई सूचनाओं को बताया। शहर के कुल चार विद्यालय से कुल 15-16 छात्र-छात्राएं सम्मिलित होंगी। प्रत्येक स्कूल से एक शिक्षक रहेगा। हमारे विद्यालय से कृपलानी सर जा रहे है। कृपलानी सर के अलावा दो महिला शिक्षिका भी रहेंगी। यह पूरा आयोजन शहर की ख्यातनाम बच्चो पर काम करने वाली संस्था ‘कल्पतरू’ करवा रही है। इसी कारण बहुत मामूली राशि जाने वाली प्रत्येक छात्रा को देनी तय की गई है।‘जरूरी साथ ले जाने वाले सामान की सूची अनुसार तैयारी करनी है।’ घर आकर अनन्या ने दोनों सूची मां को थमायी। हालत में अभी थोड़ा सुधार था। हालांकि मलेरिया की वजह से काफी कमजोर हो गई थी मां। ‘‘क्या है?’’ कहती हुई मां सूचनाएं एवं विवरण पढ़ने लगी। फिर बोली- ‘‘सबकुछ तो तैयार है। करना क्या है? जमा ले। वो नीला वाला बेग और काला सूटकेस ऊपर की ताक से उतार ले।’’ ‘यानि मां को जाने में कोई आपत्ति नहीं है।’ सोच में पड़ी अनन्या ने पूछ ही लिया- ‘‘ फिर तुम खामोश क्यों थी मां? इतने दिन कुछ बोली क्यों नहीं? मेरे जाने से तुम खुश नहीं हो?’’‘‘पगली है तू। सयानी हो रही है, धीरे धीरे सब समझ जाओगी। हर्ष अतिरेक से भी बनते काम बिगड़ जाते है या प्रसन्नता समय आने पर ही व्यक्त होनी चाहिए। मौन भी लाभ लिए होता है।’’9 अगस्त की शाम जब पापा घर आये तो उनके साथ लाल रंग का पहिए वाला सूटकेस थ जिसे वे स्ट्राॅलर कह रहे थे। पीछ पर लादने वाला नीला एयर बेग भी था। इसके साथ ही खाने के सामान के पैकेट, कुछ कपड़े वगैरह के साथ टार्च के सेल, छोटा टूथपेस्ट, कंघी, जैसी छोटी-छोटी ओर भी वस्तुएं देखकर वह खुशी के मारे उछल पड़ी। आगे बढ़कर वह पापा के कंधे पर झूल गई जिससे उनका संतुलन बिगड़ने लगा- ‘‘अरे..रे..क्या करती है अन्नु?’’ वह अपने पापा से लिपट गई- ‘‘आप बहुत अच्छे है पापा।’’‘‘हां जब सामान लाते है तब। वर्ना डांटते है जब.....बुरे। ऐसा ही है ना...’’ मां मुस्कुराने लगी। उनके हाथ में अनन्या के प्रेस किए हुउ कपड़ो की थड़ी थी। ‘‘लो अब कपड़े भी जमा दो इसके।’’ कहते हुए वे चादर, तौलिए, नेपकिन, रूमाल-मौजे जैसे जमा किए हुए और भी कपड़े ले आयी। उन्होंने सारा सामान पहले से ही निकाल रखा था। बाकी बचा सामान पापा मम्मी की लिस्ट अनुसार ले ही आये थे। ‘‘ये कुछ दवाईयां व फस्र्टएड का सामान का डिब्बा भी रखा है।’’ अनन्या को आश्चर्य हो रहा था। बिमार होते हएु मां ने ये गुपचुप तैयारी कब पूरी कर ली थी। साकेत और दादी दोनों घर से बाहर थे। दादी पड़ौस के मृत्यु वाले घर में गुरूड़ पुराण सुनने गई हुई थी और साकेत सहपाठी के यहो पढ़ने। मां ने सारा लगेज जम जाने के बाद पलंग के नीचे रखवा दिया। अब तक दादी व साकेत दोनों ही उसके जाने की बात से अनभिज्ञ थे।‘‘सुबह सवा छः बजे की ट्रेन है।

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

कारगिल की घाटी : 6

रेल यात्रा की खुशी


कक्षा 9 बी की छात्राएं इस गीत को उतार कर याद कर लें। दो दिन बाद समूह गीत की तैयारी शुरू कराई जानी है। यह आदेश पढ़कर 9 बी की छात्राएं लिखने के लिए धकियाने लगी। कुछ तेज तर्राट लड़किया झुंड में आगे घुस गई। उनमें मिताली भी थी। मिताली ने सूचना पट्ट पर अनन्या का कारगिल जाने वाले ट्रूप में लिखा देखा तो वह भीड़ से बचती पीछे की ओर सरकने लग़ी। 
कुछ देर बाद भीड़ कम छंट गईतो अनन्या आगे बढ़ी। सूचना पट्ट साफ दिखाई दे रहा था। अपना नाम सूचनापट्ट पर देखते ही अनन्या कूद पड़ी। कारगिल टूयर में जाने वालो में जोगेश्वरी, देवयानी और सानिया के नाम भी थे। ये तीनों अनन्या की कक्षा की नहीं थी। जोगेश्वरी 10 ए और सानिया 10 बी की छात्रा थी। देवयानी कौनसी क्लास की है, अभी उसे यह नहीं मालूम। कश्मीर जाने के लिए उसका मन उत्साह से भर गया। कश्मीर भारत का स्वर्ग है अब तक उसने यही पढ़ा-सुना था। वह तो रेलगाड़ी में भी पहली बार ही बेठेगी। कभी कभार उसने बस की यात्रा तो की है पर रेल का सफर भी पहली बार ही करेगी। छुक..छुक..छुक...रेल का शोर उसके कानों में उभरने लगा। लड़किया उसे बधाई देने लगी। इतने में एक लम्बी पतली लडत्रकी उसके सामने यह पूछती हुई आ खड़ी हुई- ‘‘तुम्हीं अनन्या हो?’’
‘हां’ अनन्या ने हां में अपनी गर्दन हिलाई।
‘‘मैं देवयानी हूं...कारगिल ट्रूप में मेरा नाम भी है और तुम्हारा भी....यानि हम साथ जा रहे है।’’
‘‘अजी ये तो अच्छी बात है। तुम कौनसी कक्षा की हो?’’
‘‘मैं आठवी सी की छात्रा हूं।’’
‘‘पहले तो कीज्ञी देखा नहीं तुम्हें स्कूल में? कहां रहती हो?’’
‘‘हां मेरा नया एडमिशन है। अभी एक डेढ़ महीना पहले ही भर्ती हुई है। मैं फतहपुरा सर्किल पर रहती हूं। अपने नानी के साथ। डाॅ. आप्टे का नाम तुमने सुना हो शायद, शहर के बड़े नेत्र निशेषज्ञ है और तुम कहां रहती हो?’’ 
‘‘मैं पुराने शहर में मंडी में रहती हूं। मेरे पिता पुलिस लाईंस में होम गार्ड है और मेरी मां बाल ज्ञान मंदिर में शिक्षिका.... और तुम्हारे माता पिता? तुमने उनके बारे में तो बताया नहीं? क्या तुम जोगेश्वरी व सानिया को जानती हो? उनका नाम भी हमारे इस ग्रुप है।’’
‘‘नहीं नहीं मैं किसी को नहीं जानती। दरअसल इस स्कूल में मैं कुछ महीने पहले ही तो पढ़ने आयी हूं। मेरे माता पिता विदेश में नौकरी करते है। अभी आॅस्ट्रेलिया में है इससे पहले हम सब दुबई में थे।’’ इतने में सड़क पर कार का होर्न बजा। ‘‘अच्छाा मैं चलती हूं... मुझे लेने गाड़ी आ गई है।’’ बाॅय में हाथ हिलाती देवयानी स्कूल के मुख्य  द्वार की ओर बढ़ गई। अनन्या देवयानी की बात सुनकर कुछ सोचने लगी। मिताली ने आकर उसके कंधे पकड़ कर झकझोरा- ‘‘क्या आज घर नहीं चलना? यहां नोटिस बोर्ड पर ही चिपके रहना है क्या...?
‘चलो चलते है’ के अंदाज में अनन्या ने हाथ हिलाया ओर वे स्कूल के मुख्य द्वार की ओर बढ़ गई। वे पैदल ही स्कूल से घर और घर से स्कूल आती जाती थी। स्कूल घर के बीच यही कोई आधा पौन किलोमीटर की दूरी थी जिसे वे लोग गलियों में से शार्टकट के रास्ते 15-20 मिनिट में पूरा कर लेती थी।
कई बार अनन्या ने पापा से साईकिल दिलाने की बात कही पर वे उसे अगली कक्षा में दिला देने की बात कहकर पुचकार लेते। इस कारण वह ज्यादा जिद नहीं कर पाती। पिछले साल साकेत ने साईकिल मांगी तो इस साल उसे मिल गई। मम्मी का कहना है कि साकेत का स्कूल दूर है तुम्हारा तो पास ही है। तुम्हें साईकिल की क्या जरूरत? अनन्या सोचती इसमें जरूरत की क्या बात, उसका बहुत मन करता है साईकिल चलाने का तो मम्मी कहती- खरीद भी लेंगे तो रखेंगे कहां? इस मकान में पहले से ही जगह की तंगी है। वह कहती घर बदल लो। नया ले लो। उसके इस सुझाव पर मां हंस पड़ती और दादी कहती घर खरीदने जितने पैसे भी तो चाहिए। उफ! मैं कुछ नहीं जानती बस मुझे साईकिल चलानी है। वह फर्राटे से उड़ना चाहती है ओर लोगों की तरह।
‘‘किस सोच में डूबी हो अनन्या? तुम तो बहुत किसम्मत वाली निकली। पता है तुम्हारा नाम बोर्ड तक कैसे पहुंचा?’’
‘नहीं’ कुछ नहीं बोलकर उसने गर्दन हिलायी।
- कमलेश मेडम ने दिया है तुम्हारा नाम। सूची में कुल दस नाम थे पर चुनना केवल चार को ही था। बाकी छः नाम कट गये। तुम्हारा रह गया।
- तुम्हें कैसे मालूम?
- हमारी कक्षा की लड़कियां बता रही थी। स्टाॅफ रूम में कमलेश मेडम कुपलानी सर के सामने तुम्हारा पक्ष लेते हुए कह रही थी, ‘अधिक पैसे वाले घर से नहीं है लड़की पर है कुशाग्र और अनुशासित। उसकी ऊंची कदकाठी भी ट्रूप के लायक है। उसे मौका अवश्य दीजियेगा।’
- सच, ऐसा कहा उन्होंने।’ तभी उसे दादी की उसे लेकर कही फब्ती याद हो आई। ‘ऊंची ऊंटनी जैसी हो गई है।’ तब पापा ने गर्व से कहा था, ‘होगी क्यों नहीं मां, अपनी अन्नू अच्छी खिलाड़ी जो है। जो बच्चे खेलते है वो भी एक तरह का व्यायाम ही है। खेलकूद से न केवल हष्ट-पुष्ट रहते बल्कि शरीर भी सुगठित व सुडौल बनता है। फिर तुम अपनी लाडली को रोज मक्खन रोटी जो खिलाती हो।’ पापा की बात पर दादी मुस्कुराती बोली- ‘लड़के लड़की का भेद नहीं करती मैं।’ ‘पर कभी कभी टोंक ही देती हो उसके जोर से हंसने पर.... बोलने पर... उठबैठ पर....’ ‘देख पप्पू तू उसकी गलत हिमायत ना भर। मैं कोई उसकी दुश्मन नहीं हूं। दादी हूं उसकी। बड़े जतन से पालपोस कर बड़ा किया है। आजकल जमाने की हवा बहुत खराब है जो हर समय मेरे को चिन्ता लगी रहती है। इसलिए जरा बरज लेती हूं। रोज अखबारों में किस्से भरे रहते है......’फिर तो दादी और पापा में बहस होने लगी। 
अनन्या को चुपचाप चलते देख मिताली ने पूछा- ‘‘क्या सोच रही हो अनन्या?’’
‘‘सोचती हूं मेरा ऊंटनी होना बेकार नहीं गया। ट्रूप के लिए काम आ गया।’’ और फुस्स करके वह हंस पड़ी। कहने लगी-
‘‘घर पर मां तो अभी आई नहीं होगी और पापा तो वैसे ही देर से आते है। साकेत को कुछ कहने बताने का कोई मतलब नहीं। ऐसे ही बखेड़ा करेगा। चिल्ला चिल्लाकर रोयेगा सो अलग... और दादी को बताना यानि उफ! किसी काम के लिए इन्कार करवाना। दादी तो वैसे ही इतनी डरपोक है कि उसे दूध की डेयरी तक अकेला जाने से मना करती है। कहती है साकेत को ले जा। जैसे वह कोई गुड़ की डली है जो उठा लेगा और मुंह में रख लेगा गप्प।’’
अनन्या घर पहुंची तो देखा मां आ चुकी है और बिस्तर पर सो रही है। उन्होंने पूरे बदन को मोटी चादर से ढ़क रखा है। वह पास गई तो पता चला कि मां का बदन गर्म है। ‘‘मां तुम्हें तो बुखार आ रहा है?’’
 ‘‘हां, हाथ पैर और सिर दर्द कर रहा है।’’ वह सोच में पड़ गई। क्या करें? ‘‘चाय बनाऊं? दादी कहां गई मां?’’ इधर उधर देख उसने पूछा।
‘‘पड़ौस में मृत्यु हो गई है। दादी वहां गई है। मुझे भी जाना है पर तबीयत साथ नहीं दे रही है। पूरा घर बिखर रहा और शाम का खाना बनाना है। तुम दोनांे को अभी भूख लगेगी।’’ उन्होंने उठने की कोशिश करते हुए कहा।
‘‘सोई रहो मां। अब मैं आ गई हूं।’’ अनन्या ने मां को तस्सली दी। ‘‘मेरे पास स्कूटी होती तो तुम्हें अभी अस्पताल लेकर चली जाती। चलो मां ओटो रिक्शा में ले चलती हूं।
‘‘नहीं मैंने गोली ले ली है। अभी ठीक हो जाऊंगी।’’

कारगिल की घाटी : 5


इकबाल के लिखे इस प्रसिद्ध गीत को नोटिस बोर्ड पर लगा दिया गया। 
गीत


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा

हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलसिता हमारा। 


घुर्बत मे हो अगर हम रहता है दिल वतन मे

समझो वही हमे भी दिल है जहाँ हमारा ।


परबत वो सब से ऊंचा हमसाया आसमाँ का

वो संतरी हमारा वो पासबा हमारा ।
गोदी मे खेलती है इसकी हजारो नदिया
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जना हमारा ।


ए अब रौद गंगा वो दिन है याद तुझको

उतर तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा ।
मजहब नहीं सिखाता आपस मे बैर रखना
हिन्दी है हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा ।।

युनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशान हमारा ।
कुछ बात है की हस्ती मिटती नही हमारी
सदियो रहा है दुश्मन दौर-ए-जमान हमारा ।।

इक्बाल कोइ मेहरम अपना नही जहाँ मे
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहा हमारा ।।

गुरुवार, 13 मार्च 2014

कारगिल की घाटी : 4

‘‘हमंे माफ कर दो अनन्या... कहते हुए लड़कियों ने अनन्या को घेर लिया। रूंआसी अनन्या के मुंह से केवल इतना ही फूटा- ‘‘हमें सजा तो मिल ही चुकी है। अब पछताने से क्या फायदा? कल प्रार्थना के बाद नामों की घोषणा होने वाली है.....ऐन मौके पर चयन के एक दिन पहले ही हमारी कक्षा का नाम काट जाता है...... तो?


मध्यान्तर की छुट्टी में सभी लड़किया अटकले लगाने लगी- ‘‘परेड दल के लिए किस किस का नाम चुना जा सकता है....और दल का लीडर कौन कौन हो सकता है?’’

लड़कियों की इस बात पर दीप्ति बोल उठी- ‘‘हमारी ट्रूप लीडर तो अनन्या जैसी होनी चाहिए।’’
‘‘हां, बिल्कुल सही है।’’ 
‘‘हम सबकी भी यही राय है’’ दूसरे सेक्शन की लड़कियों ने भी स्वर मिलाया। सब कहने लगी- ‘‘अनन्या में लीडर के सब गुण है। समझदार होने के साथ सबको साथ लेकर चलना उसे आता है। वह सबसे प्रेम करती है किसी का बुरा नहीं सोचती है......बातूनी लड़कियों की बातें की गाड़ी पटरी पर पटरी बदलती दौड़ी जा रही थी अगर छृट्टी की घंटी न बजी होती तो वे बहुत कुछ बतियाती रहती। 
अपना अपना बैग-बस्ता-टिफन उठाए सब घर जाने को आतुर हुई सबकुछ भूलकर गेट की ओर लपक कर दौड़ पड़ी।
गेट से निकल कर चलती-दौड़ती लड़कियों का रेला ऐसा लग रहा था मानो कैद से छूटकर कैदी भागे जा रहे हो सरपट। सुबह ठीक नौ बजते ही यही लड़कियां घंटी की आवाज पर स्कूल प्रागंण में आ जुटती है- कतारबद्ध होकर अपनी अपनी कक्षाओं की पंक्ति में अलग-अलग लाईन में। छोटी से बड़ी लम्बाई के क्रम में जमी हुई अनुशासन से बंधी हुई सावधान की मुद्रा में प्रार्थना की मुद्रा लिए आंखे बंद कर तल्लीन लड़कियां।  अन्न्या अपनी कक्षा लाईन में सबसे पीछे खड़ी हुई लम्बी लड़की थी। उसकी लम्बे कद के साथ लम्बे बाल, चेहरे पर लिपटी मधुर मुस्कान उसे सौम्य बनाती थी।
दूसरी घंटी बजते ही प्रर्थना प्रारंभ हुई। फिर इसके बाद ताजा समाचारों का वाचन हुआ। फिर पी.टी.आई. मेडम ने अमृत वचन सुनाये। प्रार्थना सभा के विधिवत रूप से पूरा होने के बाद प्रधानाचार्याजी माईक के सामने आकर खड़ी हुई। वे सब छात्रों को संबोधित करके कहने लगी-
‘‘प्यारे बच्चों, तुम्हें यह जानकर ख्ुशी होगी और मुझ व हमारे स्टाफ को भी गर्व होगा कि इस बार 15 अगस्त पर स्टेडियम में होने वाली परेड में हमारे विद्यालय का ट्रूप सबसे आगे होगा....और ट्रूप के आगे होगा हमारे विद्यालय का झंडा थामें ट्रूप लीडर। ट्रूप लीडर उसे चुना जायेगा जो परेड प्रशिक्षण के दौरान अच्दा प्रदर्शन करेगा। इसका निर्णय आपकी पी.टी.आई. मेडम करेगी।
इसके अलावा हमारे विद्यालय की एक छात्रा को स्टेडिय परेड टीम की कमांडर बनाया जायेगा। जिसका चयन सभी स्कूल से जुड़ी चयन समिति करेगी। इस बार स्टेडियम में समूह गान के लिए जो गाना चुना गया है जैसा सभी को मालूम भी है ‘‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा’’ इकबाल का लिख मशहूर यह गीत नोटिस बोर्ड पर पूरा लिखा हुआ है। उसे लिखकर सही तरह से याद कर लें। ताकि कोई त्रुटि ना रहे।
इन सबमें एक खास और अहम बात जो मैं अब बताने जा रही हूं वह है हमारे  शहर के चार विद्यालयों से छात्र-छात्राओं का चुना हुआ एक प्रतिनिधि मंडल स्वाधीनता दिवस पर कारगील की घाटी में शहीद स्मारक पर देश की सेना के जवानों के साथ मनायेगा। प्रधानाचार्याजी की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि लड़कियों में हर्ष की लहर दौड़ गई। तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। कुछ क्षण बाद बड़ी मेडम ने सबको शांत होने का इशारा किया। कुल चार छात्रों को ले जाना तय है। इच्छुक छात्राएं अपना नाम कक्षा टीचर को लिखवा दें। लिखे हुए नामों से ही चयन किया जायेगा। इस दल के साथ स्कूल की अध्यापिका भी रहेगी। बारह दिन के इस टूयर में जम्मू कशमीर की सैर भी करायी जायेगी। यह टूयर 10 अगस्त को उदयपुर से प्रातः सवा छः बजे रेलगाड़ी की यात्रा से प्रारंभ होगा। टूयर की विस्तृत जानकारी सूचना पट्ट पर लगा दी जायेगी। 
इसके  साथ बड़ी मेडम ने अपनी बात को खतम करते हुए आगे निर्देश दिया- ‘‘सभी अपनी अपनी कक्षाओं की ओर प्रस्थान करें।’’
पहले पाश्र्व की पंक्ति बढ़नी शुरू हुई। इसके अंतिम छोर से साथ वाली दूसरी पंक्ति जुड़ती गई। स्व-अनुशासन व स्व-नियंत्रण का इससे अच्छा उदाहरण और क्या होगा कि बिना शोर किए एक जैसी यूनीफोर्म पहने कतारबद्ध लड़किया आगे बढ़ती अपनी कक्षाओं के निर्धारित स्थानों पर पहुंच गई। कुछ ही देर बाद शिक्षिकाओं के मुपीछे मुड़ते ही ये नियंत्रण गुम हो गया। लड़किया कक्षा में पहले भीतर घुसने के लिए एक दूसरे को धकियाती हुई शोर मचाने लगी।
अनन्या के साथ दीप्ति ने अपना नाम लिखवाया था। कारगित की घाटी में 15 अगस्त अर्थात सेना के जवानों के साथ स्तंत्रता दिवस मनाने के लिए। वे भारत का स्वर्ग कश्मीर की धरती पर जाने को उत्सुक थी।